Book Title: Samanya Pandulipi Vigyan
Author(s): Mahavirprasad Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 196
________________ अध्याय 7 शब्द और अर्थ : एक समस्या वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थो प्रतिपत्तये। जगतः पितरौ वन्दे पार्वती परमेश्वरौ॥ (रघुवंश; कालिदास) अर्थात् शब्द-अर्थ के समान सम्पृक्त जगत के माता-पिता पार्वती-परमेश्वर की (मैं) वाणी अर्थ की प्रतिपत्ति के लिए वन्दना करता हूँ। ___पाण्डुलिपिविज्ञान पाण्डुलिपि का लेखन, कागज, लिपि, कवि या काल मात्र से संबंधित नहीं है, अपितु उसका मूल पाण्डुलिपि के शब्दार्थों में निहित है। अतः शब्द और अर्थ का पाण्डुलिपिविज्ञान में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनमें भी शब्द अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी सोपान के सहारे हम कृतिकार के अर्थ तक पहुँचते हैं। यदि शब्दों में अर्थ-संकेत करके मनुष्य ने भाषा न बना ली होती तो क्या होता? इसलिए कहा जाता है कि यदि शब्दात्मक ज्योति का उदय नहीं होता तो यह सम्पूर्ण जगत् अंधकार में ही रहता। यदि कोई शब्द का समुचित प्रयोग करना जानता है तो समझो उसे सब कुछ मिल गया। कहा है - 'एकः शब्दः सम्यग् ज्ञातः सुप्रयुक्तः स्वर्गे लोके कामधुग् भवति'। अर्थात् एक शब्द भी यदि अच्छी तरह जानकर सुप्रयुक्त किया जाए, तो वह स्वर्गलोक में (प्रयोग करने वाले के लिए) कामधेनु होता है।' 1. शब्द-समस्या शब्द कई प्रकार के होते हैं; जो अर्थ प्रक्रिया को समझने में सहायक होते हैं। शब्द-प्रकार (1) रूढ़, यौगिक तथा योगरूढ़ : इस शब्द-भेद (प्रकार) के द्वारा अर्थप्रदान की प्रक्रिया प्रकट होती है। ये प्रक्रियाएँ तीन प्रकार की होती हैं। 1. अच्छी हिन्दी : किशोरीदास वाजपेयी, पृ. 83 शब्द और अर्थ : एक समस्या 179 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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