Book Title: Samanya Pandulipi Vigyan
Author(s): Mahavirprasad Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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की मिट्टी या वृक्ष के तने या कोयले आदि की वैज्ञानिक जाँच की जाती है । उससे उनकी रेडियो एक्टिव कार्बन विधि से काल-निर्णय लिया जाता है। मोहन जोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में प्राप्त सामग्री का काल निर्धारण करने में पृथ्वी पर जमी पर्तों को आधार बनाया गया था। प्रायः यह माना जाता है कि प्रत्येक सौ साल में पृथ्वी पर 311 इंच मोटी परत जम जाती है। इसी अनुमान से जितनी गहराई से सामग्री प्राप्त होती है उसका काल अनुमानित कर लिया जाता है।
इसी प्रकार "यदि उस भूमि पर वृक्ष उगे हुए हैं तो वृक्षों के तने काट कर देखने पर उसमें एक के ऊपर एक कितनी ही पर्त दिखाई पड़ती हैं, उनके आधार पर उस वृक्ष का भी समय निर्धारित किया जा सकता है। भूमि और वृक्ष दोनों की परतों से उस वस्तु का काल प्राप्त हो सकता है। ये दोनों ही प्रणालियाँ वैज्ञानिक हैं । ज्योतिष की गणना की पद्धति भी वैज्ञानिक ही है । पर अभी हाल ही में संयुक्त राज्य के प्रो. एम. सी. लिब्बी ने रेडियोएक्टिव कार्बन से कालनिर्धारण की वैज्ञानिक विधि का उद्घाटन किया। टाटा इंस्टीट्यूट ऑव फंडामेंटल रिसर्च नामक मुम्बई स्थित संस्थान ने 1951 ई. से 'रेडियो-कार्बन काल-निर्धारण विभाग स्थापित कर रखा है, इसकी प्रयोगशाला में 'कार्बन' रेडियोधर्मिता के आधार पर काल-निर्धारण की विशद पद्धति विकसित करली है। इससे वस्तुओं के काल-निर्धारण का कार्य सम्पन्न किया जाता है।"
इस प्रकार काल-निर्णय संबंधी अनेक समस्याएँ आ सकती हैं, जिनकी संक्षिप्त जानकारी देने का यहाँ प्रयास किया गया है। 7. कवि-नाम निर्धारण की समस्या ___पाण्डुलिपिविज्ञान की अन्य अनेक समस्याओं की तरह कवि-नाम निर्धारण की समस्या भी बहुत जटिल है। पाण्डुलिपि संग्रह में कई बार ऐसे ग्रंथ भी हमारे सामने आते हैं, जिनमें प्रत्यक्षत: रचनाकार के नाम का उल्लेख नहीं होता, अथवा मिलते-जुलते एकाधिक नामों का एक साथ उल्लेख होता है अथवा ग्रंथ के लिपिकर्ता को ही रचनाकार मान लिया जाता है। अत: यह जानना कठिन हो जाता है कि रचना का मूल कवि या रचनाकार कौन है? इस समस्या के अनेक कारण हो सकते हैं । कुछ का उल्लेख डॉ. सत्येन्द्र जी ने इस प्रकार किया है - 1. पाण्डुलिपिविज्ञान, डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 300
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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