Book Title: Samanya Pandulipi Vigyan
Author(s): Mahavirprasad Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 186
________________ (ग) ऐतिहासिक घटनाक्रम : काल-निर्णय हेतु ऐतिहासिक घटनाक्रम का भी महत्वपूर्ण स्थान है। ये बाह्य साक्ष्य कहलाती हैं। किसी अन्त:साक्ष्य के सहारे इनकी सहायता ली जा सकती है। इस सम्बन्ध में डॉ. सत्येन्द्र कहते हैं कि "वामन के सम्बन्ध में राजतरंगिणी में उल्लेख है कि वह जयापीड़ का मंत्री था और व्यूहलर ने बताया है कि काश्मीरी पंडितों में यह जनश्रुति है कि यह जयापीड़ का मंत्री वामन ही 'काव्यालंकार सूत्र' का रचयिता और 'रीति' सम्प्रदाय का प्रवर्तक है। इस ऐतिहासिक आधार पर 'वामन' का काल 200 ई. के लगभग निर्धारित किया जा सकता है। इस संबंध का कोई संदर्भ हमें वामन की कृति में नहीं मिलता। इतिहास का उल्लेख और अन श्रुति से पष्टि - ये दो बातें ही इसका आधार हैं । हाँ, अन्य बहिःसाक्ष्यों से पुष्टि अवश्य होती है। अतः किसी भी ऐसे स्वतंत्र ऐतिहासिक उल्लेख की अन्य विधि से भी पुष्टि की जानी चाहिए।" इसी प्रकार अन्त:साक्ष्य के सहारे या ऐतिहासिक घटनाक्रम के आधार पर काल-निर्णय की दृष्टि से वे 'भट्टि' एवं 'पझावत' के उदाहरणों पर भी विस्तार से चर्चा करते हैं। (घ) सामाजिक परिस्थितियाँ एवं (ङ) सांस्कृतिक परिवेश : वस्तुतः समाज और संस्कृति अन्योन्याश्रित हैं। अंतरंग साक्ष्य से प्राप्त सामाजिक एवं सांस्कृतिक सामग्री का साम्य बाह्य साक्ष्य से मिलान कर किसी रचना के कालनिर्णय में सहायता ली जा सकती है। क्योंकि काल-निर्णय में बाह्य-साक्ष्य की अति महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश को कालक्रम निर्धारण में उपयोगी बनाने के लिए उनका स्वयं का काल-क्रम ऐतिहासिक आधार से सुनिश्चित करना होगा। सामाजिक परिस्थितियों एवं सांस्कृतिक परिवेश के साक्ष्य के आधार पर डॉ. माताप्रसाद गुप्त ने अपनी 'बसन्त विलास और उसकी भाषा' नामक पुस्तक में काल-निर्णय करने का प्रयत्न किया है। 'बसन्त विलास' की रचना के काल निर्धारण में भाषा को आधार बनाकर उसे सन् 1400 से 1424 ई. के मध्य की रचना माना जाता था। किन्तु डॉ. गुप्त ने इस मत का खण्डन करते हुए कहा है कि - "कृति के रचना-काल का उसमें कोई उल्लेख नहीं है। उसकी प्राचीनतम प्राप्त प्रति सं. 1508 की है, इसलिये 1. पाण्डुलिपिविज्ञान, पृ. 285 2. वही, पृ. 285-289 काल-निर्णय 169 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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