Book Title: Rup ka Garv Diwakar Chitrakatha 038 Author(s): Shreechand Surana Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 9
________________ जल पीकर सनत्कुमार ने पूछा रूपका गर्व यहाँ पास में ही मेरे शरीर में दाह मानसरोवर है, उसी का लगी है क्या आप मुझे यह अमृत जल है। मानसरोवर तक पहुँचाने क्यों नहीं, यह की कृपा करेंगे? हमारा कर्त्तव्य है। देव ! आप कौन हैं? और यह अमृत के समान जल कहाँ से लाये? देवता ने सनत्कुमार को मानसरोवर में पहुंचा दिया। आर्यपुत्र ने शीतल जल में प्रवेश किया। शरीर सनत्कुमार मानसरोवर में स्नान कर रहा था कि अचानक की क्लान्ति, दाह सब शान्त हो गई। एक क्रूर यक्ष वहाँ प्रकट हुआ और फुकारता हुआ बोला वाह ! मानसरोवर जैसे भूखा सिंह हाथी को Ke- के शीतल जल से शरीर के खोजता है, वैसे ही मैं बहत। सब दाह शान्त हो गये। | दिनों से तेरी खोज कर रहा हूँ। अब तू बचकर कहाँ जायेगा? / thenidinense 87Page Navigation
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