Book Title: Rup ka Garv Diwakar Chitrakatha 038
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 13
________________ अपने सामने एक सुन्दर वीर पुरुष को खड़ा देखकर सुन्दरी हर्षित हो पलंग से उठ गई। नीची नजर किये। वह बोली देव ! आप कौन हैं, मैं नहीं जानती । किन्तु लगता है आप कोई दयालु वीर पुरुष हैं, मेरे दुःखों को दूर करने में समर्थ हैं इसलिए आपके प्रश्नों का उत्तर देती हूँ। एक दिन मैं अपने महल की छत पर सोई थी तब एक विद्याधर ने मेरा अपहरण कर लिया और विद्याबल से इस प्रासाद का निर्माण कर मुझे यहाँ अकेली छोड़ गया। रूप का गर्व Jain Education International सुन्दरी ने अपनी कहानी सुनाईराष्ट्री कन्या सुनन्दा हूँ। मैंने अपने | स्वप्न के अनुसार कुरुकुल के सूर्य सनत्कुमार को अपना पति स्वीकार किया है, वे महान् पराक्रमी हैं। मेरे माता-पिता ने भी अंजलि दान कर मुझे उनके लिए दान कर दिया है। (सुन्दरी ! विश्वास रखो, तुम सत्य कहोगी तो तुम्हें। कोई कष्ट नहीं। होगा। क्या वह भाग गया? DYO नहीं, वह कुछ दिन बाद आयेगा और मेरे साथ जबर्दस्ती विवाह करने का प्रयास करेगा हाय ! अब मेरा क्या होगा? For Private Personal Use Only வறு का फिर क्या हुआ ? तुम सनत्कुमार के पास गई क्यों नहीं? सुन्दरी ! तुम डरो मत! मैं ही कुरुवंशी सनत्कुमार हूँ, जिसे तुमने स्वप्न में देखा है। www.jainelibrary.org.

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