Book Title: Rup ka Garv Diwakar Chitrakatha 038
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ रूप का गर्व कुछ दिनों बाद तीर्थंकर धर्मनाथ स्वामी हस्तिनापुर पधारे। देशना सुनकर राजा अश्वसेन ने प्रार्थना कीराजा अश्वसेन, सनत्कुमार आदि हजारों नगरजन उनके दर्शन करने गये। प्रभु ने देशना में कहा मनुष्य सोचता है, अभी जवानी है, संसार के सुख भोग लूँ, बुढ़ापे में संयम लूँगा, परन्तु मृत्यु का क्या भरोसा, बुढ़ापा आने से पहले ही मृत्यु आ गई तो यह जीवन व्यर्थ ही चला जायेगा। इसलिए शुभ कार्य करने में विलम्ब मत करो। राजा ने सनत्कुमार का राजतिलक किया। महाराज वत्स ! प्रजा को पुत्र की सनत्कुमार चिरायु हों।) भाँति स्नेह करना । Wave Education International प्रभु ! मैं संसार त्याग कर दीक्षा लेना चाहता हूँ। राजन् ! जो सत्कर्म करना है, शीघ्र करो ! | महेन्द्रसिंह को सेनापति पद दिया। (आज से महेन्द्रसिंह को हस्तिनापुर की सेनाका सेनानायक नियुक्त किया जाता है। फिर राजा अश्वसेन रानी सहदेवी तथा अनेक लोगों के साथ तीर्थंकर धर्मनाथ स्वामी के पास दीक्षित हो गये। For Private sonal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36