Book Title: Rup ka Garv Diwakar Chitrakatha 038
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 31
________________ मुनि सनत्कुमार ध्यान पूर्ण करके चलने ही वाले थे कि तभी वे दोनों देव वैद्य का रूप बनाकर बगल में झोली लटकाये हाथ में अनेक जड़ी-बूटी लिए हुए उनके सामने आये। बोलेहे तपस्वी ! आपके शरीर में तो कुष्ठ महारोग हो गया है। ক दोनों देवों ने आश्चर्य से पूछायह भाव रोग क्या होते हैं? रूप का गर्व ation International वत्स ! यह तो शरीर का स्वभाव है। वैद्य आप इसकी चिकित्सा क्यों नहीं करवाते? हमारे पास सब रोगों की औषधि है। हम आपको शीघ्र ही रोग मुक्त कर देंगे। क्रोध, मान, माया, लोभ, कषाय आदि भाव रोग हैं। ये जन्म-जन्म तक कष्ट देते हैं। कुष्ठ आदि तो शरीर के रोग हैं। शरीर के साथ ही छूट जाते हैं। इनकी क्या चिन्ता है ? M वैद्यराज ! रोग दो प्रकार के हैं-द्रव्य रोग और भाव रोग। आप किन रोगों की चिकित्सा करते हैं? 29 For Private & Personal Use Only Augustmod देव लज्जित से होकर बोले - नहीं, इन रोगों की बात हम नहीं करते। हम तो शरीर के रोगों की चिकित्सा करते हैं। www.jainelibrary.org

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