Book Title: Rup ka Garv Diwakar Chitrakatha 038
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 25
________________ कितना अद्भुत तेज है? सम्पूर्ण देह जैसे स्वर्णमयी है, सचमुच जैसा सुना था उससे अधिक ही है। रूपका गर्व दोनों देवों की फुसफुसाहट सुनकर चक्रवर्ती बोले विप्रदेव ! क्या चाहते हैं आप? राजन् ! आपके अद्भुत रूप-लावण्य की चर्चा तीनों लोक में हो रही है। हम (भी अपने नेत्रों से निहारने के लिए आये हैं। NEET मंद मुस्कान के साथ चक्रवर्ती बोले READARANA AAAAANIAMOM/nyoanal फिर चक्रवर्ती अपने श्रृंगार कक्ष की तरफ इशारा करते हैं। /मैं वस्त्राभूषण पहनकर (शीघ्र ही सभा में आऊँगा। सौन्दर्य देखना हो तो तब आप देखिये। विप्रवर ! अभी तो शरीर पर तेल व उबटन लगा है, सुन्दरता का क्या पता चलेगा। जजए ORDSCNORK जनDODOS या COVOYO MUVITION AUTOYOTO OUVAL देवता नमस्कार करके चले जाते हैं। Education International For Private Fersonal Use Only www.jainelibrary.org

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