Book Title: Rup ka Garv Diwakar Chitrakatha 038
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 11
________________ रूप का गर्व आठों कन्याएँ उसे नगर के अन्दर अपने पिता राजा यह सुनकर रामा भानुवेग मुस्कराया और भानुवेग के पास ले गईं। राजा भानुवेग ने उसका जोरदार समाधान करते हुए बोलास्वागत किया। सनत्कुमार का दिमाग अभी भी चक्कर खा | KARob कुमार ! एक नैमित्तिक के कहे रहा था। आखिर उसने भानुवेग से पूछ ही लिया-5 innon/ अनुसार इस घड़ी आपका आगमन राजन् ! ऐसा लगता है आप सुनिश्चित था। मेरी आठों कन्याओं सब मेरी ही प्रतीक्षा कर रहे के वर भी आप ही होंगे। इसलिए थे। क्यों? किसलिए? क्या हम आपकी प्रतीक्षा कर रहे थे। आप मुझे पहचानते हैं? जी राजा भानुवेग के आग्रह पर सनत्कुमार ने उन आठ विद्याधर कन्याओं के साथ पाणिग्रहण कर लिया। रात्रि के समय सनत्कुमार अपने शयन-कक्ष में सोया हुआ था। उसी कुछ देर बाद सनत्कुमार की नींद खुली। वह समय वही दुष्ट यक्ष वहाँ से गुजरा। उसने सनत्कुमार को देखा- चारों ओर देखने लगा ओह ! यह तो सनत्कुमार सोया हुआ है। आज बदला अरे मैं कहाँ हूँ? मेरी लेने का अच्छा अवसर है। सब पत्नियाँ कहाँ हैं? यहाँ तो चारों ओर | जंगल ही जंगल है। Kare उसने सनत्कुमार को उठाया और घने जंगलों में फेंक दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org/

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