Book Title: Rup ka Garv Diwakar Chitrakatha 038
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 10
________________ रूपका गर्व उस क्रूर यक्ष ने एक विशाल वटवृक्ष को जड़ सहित | फिर यक्ष को पकड़कर दो-तीन जोरदार मुष्टि के उखाड़कर सनत्कुमार पर प्रहार किया। सनत्कुमार ने प्रहार किये। अपनी दोनों भुजाओं में उसे रोक लिया। ENLO यक्ष घबराकर चीखता हुआ भाग छूटा। EVMNT स्नान आदि करके सनत्कुमार वहाँ से चल दिया। कुछ आगे चलने पर एक सुन्दर उद्यान में क्रीड़ा करती आठ विद्याधर कन्याएँ मिलीं। सनत्कुमार को देखकर बोलीं AVENorm आइये कुमार ! हम आपका ही हैं ! मेरा इन्तजार !! यह क्या मायाजाल है? इन्तजार कर रही थीं? 4A aroo फुटनोट # यह यक्ष पिछले जन्मों से सनत्कुमार के साथ शत्रुता रखता था। कई जन्म पूर्व की घटना है। विक्रमयश नाम का एक राजा था। उसने एक बार नागदत्त नाम के सेठ की सुन्दर नवयौवना पत्नी को देखा। उस पर आसक्त हो अपहरण कर लिया। वह युवती भी उसके प्रेम में फँस गई। नागदत्त बहुत दुःखी हुआ, परन्तु राजा के अन्याय का वह कुछ भी प्रतिकार कर न सका। दुःखी और ग्लानि से भरा नागदत्त घर छोड़कर जंगल में चला गया। प्रतिशोध की भावना के साथ मरा इस जन्म में वह यक्ष बना। विक्रम राजा भी बाद में अपनी भूल पर पश्चात्ताप करने लगा। वह साधु बनकर तपस्या करने लगा। कई जन्मों तक तप करने के बाद वही सनत्कुमार बना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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