Book Title: Rishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Author(s): Pramodkumari Sadhvi
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 147
________________ ऋषिभावित का दार्शनिक अध्ययन 145 और द्वेष से छुटकारा पाया जा सता है।३२ इस प्रकार सोरियायण इन्द्रिय संयम को ही मोक्ष का उपाय बताते हैं। १७. विदुर द्वारा प्रतिपादित साधना मार्ग विदुर ऋषि मुख्यतया ज्ञानमार्गी हे। वे कहते हैं कि जो ज्ञान आत्मभावों का परिज्ञाता होता है अर्थात् आत्मसाक्षी होता है वही ज्ञान दु:ख मोचक होता है। दूसरे शब्दों में आत्मज्ञान ही मोक्ष-मार्ग का उपाय है। कौनसा ज्ञान मुक्ति में सहायक होता है, इसे स्पष्ट करते हुए, वे पुनः कहते हैं कि "जो दूसरों को जानता है वह सब उसका सावध योग है। दूषित व्यवहार है। बंधन और दुःख का कारण है। इसके विपरीत जो ज्ञान आत्मा को जानता है वह ही मोक्ष का उपाय है।''३४ संक्षेप में विदर ऋषि के अनुसार आत्म-ज्ञान ही मोक्षमार्ग है। १८. वारिषेण द्वारा प्रतिपादित मोक्ष मार्ग वारिषेण ऋषि के अनुसार "जो प्राणातिपात आदि अठारह पापस्थानों से निवृत्त होता है, वही मोक्ष को प्राप्त करता है।"३५ उनकी दृष्टि में पापाचरण से दूर रहना ही मुक्ति का मार्ग है। दूसरे शब्दों में वे दुराचरण से विमुख होने को ही मोक्ष का साधन या उपाय बताते हैं। १९. आर्यायण का समन्वित मोक्ष मार्ग आर्यायण ऋषि न तो एकान्त रूप से ज्ञानमार्गी है और न एकान्त रूप से चारित्र या संयममार्गी है। वे परवर्ती जैन परंपरा के समान ज्ञान, दर्शन और आचरण की समन्विति को ही मोक्ष-मार्ग कहते हैं। उनके शब्दों में "आर्य का ज्ञान और आर्य का दर्शन और आर्य का आचरण सम्यक् होता है। जो सदैव आर्य कर्म को करता है और आर्य जनों के सान्निध्य में रहता है वह भवसागर से मुक्त हो जाता है।"३६ २०. उक्तटवादियों का निर्वाण संबंधी दृष्टिकोण ऋषिभाषित का बीसवां अध्ययन सामान्यतया भौतिकवादी जीवन दृष्टि का समर्थक है। फिर भी उसमें दुःख विमुक्ति की चर्चा है। उसके अंत में भी वही प्रशस्ति पाई जाती है जो अन्य अध्ययनों में है। इस अध्ययन में यह कहा गया है कि "जो शरीर को ही आत्मा मानता है वह शरीर के विनाश होने पर दु:खों से मुक्त हो जाता 32. इसिभासियाई, 16/3 33. वही, 17/2 34. वही, 17/गद्यभाग 35. वही, 18/1 गद्यभाग 36. वही, 19/45 37. वही, 20/गद्यभाग का अंत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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