Book Title: Rishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Author(s): Pramodkumari Sadhvi
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 153
________________ ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन 151 वाला कल्याण को प्राप्त होता है और पापकारी कर्म करने वाला पाप को प्राप्त होता है। हिंसक हिंसा को प्राप्त होता है और विजेता पराजय को प्राप्त करता है । १७ इसलिए वे साधक को निर्देश देते हैं कि शुभाशुभ कर्मों की इस प्रतिश्रुति को समझकर साधक उन कर्मों को नहीं करे, जिनसे उसे नारकीय जीवन जीना पड़े। इस प्रकार प्रस्तुत अध्याय के उपदेशों का सार इतना ही है कि व्यक्ति को उस प्रकार का आचरण नहीं करना चाहिये, जिसे वह अपने प्रति नहीं चाहता है। क्योंकि मनुष्य जैसा करता है तदनुरूप ही फल प्राप्त करता है । " ।६८ अतः उसे अशुभ कर्मों से या पाप कर्मों से विरत रहना चाहिये । यही उसकी मुक्ति का मार्ग है। ३१. पार्श्व का चातुर्याम ऋषिभाषित के इकतीसवें अध्याय में मोक्षमार्ग का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं कि सम्यक् सम्बुद्ध एवं कर्मागमन के द्वार का निरोध कर देने वाला साधक चातुर्याम धर्म का पालन करते हुए आठ प्रकार की कर्म ग्रंथि को नहीं बांधता है। " अतः पार्श्व ऋषि के अनुसार अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह व्रत का पालन करने वाला साधक अष्ट प्रकार की कर्मग्रथियों से विमुक्त हो जाता है और वह चतुर्गति रूप संसार में परिभ्रमण नहीं करता है। इसी अध्याय में अन्यत्र यह भी कहा गया है कि “जिसने अपने कर्तृत्य मार्ग को निश्चित कर लिया है, जो संसार में मात्र निर्जीव पदार्थों का ही आहार करता है जिसने प्रपंच जाल को निरूद्ध कर दिया है, ऐसा भिक्षु संसार का छेदन करता है। संसार - प्रसूत वेदना का छेदन करता है। संसार अर्थात् भव भ्रमण का नाश करता है। और भव- भ्रमण जन्य वेदना का नाश करता है और इस प्रकार पुनः इस संसार के जन्म ग्रहण नहीं करता । ' १७० पार्श्व की उपर्युक्त कथनों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि हिंसा आदि पाप कर्मों से विरत रहना, निर्जीव पदार्थों का सेवन करना और प्रपंच जाल से ऊपर उठ जाना, यही उनकी दृष्टि में मोक्ष का मार्ग है। ३२. पिंग ऋषि द्वारा प्रसतुत आधयत्मिक कृषि ऋषिभाषित के 32वें अध्याय में पिंग ऋषि ने भी मुख्य रूप से उसी आध्यात्मिक ऋषि की चर्चा करते हैं जिसका उल्लेख पूर्व में कर चुके हैं। आत्मा जिसका खेत है, तप जिसका बीज है, संयम जिसका हल है, अहिंसादि पांच महाव्रत और ईर्या आदि पांच समितियाँ जिसकी बैल है, ऐसी धर्मगर्भा कृषि को जो साधक 67. इसिभासियाई, 30/4 68. वही, 30/5 69. एस खलु असम्बुद्धे संवुड-कम्पन्ते चाउज्जामे नियण्ठे अट्ठविहं कम्मगण्टिं णो पगरेति । 31 / गद्यभाग 70. वही, 31/ (इ) गद्यभाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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