Book Title: Rishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Author(s): Pramodkumari Sadhvi
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 190
________________ 188 डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी गई है। ये अवधारणाएँ मुख्यत: जैन परम्परा में पाई जाती है। अष्टम् अध्याय में ऋषिभाषित के सामाजिक दर्शन और चिन्तन को प्रस्तुत किया गया है। इस अध्याय में वर्णव्यवस्था की चर्चा की के प्रसंग में हम पाते हैं कि वह वर्ण-व्यवस्था को स्वीकार करके उसे कर्मणा मानता है और प्रत्येक वर्ण को अपने नियत कर्म करने का निर्देश देता है। पुनः पुरुषार्थों में वह मोक्ष को महत्त्व देता है। निष्कर्ष में हम केवल इतना ही कह सकते हैं कि ऋषिभाषित में विविध साधना मार्गों का निर्देश हुआ है। उसमें ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, ध्यान आदि को आध्यात्मिक विकास का साधन माना गया है। किन्तु यहाँ हमें स्मरण रखना चाहिये कि ऋषिभाषित के अनेक ऋषि इन सबको समन्वित रूप में देखते हैं और ज्ञान और सदाचरण के समन्वय में ही मुक्ति की उपलब्धि सम्भव मानते हैं। Jain Education International -0 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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