Book Title: Rishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Author(s): Pramodkumari Sadhvi
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 180
________________ 178 डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी हैं। इसी प्रसंग में अंगिरस ने सामाजिक जीवन में प्रचलित बिना विचारे अनुकरण करने की प्रवृत्ति या भेड़ चाल की भी निंदा की है। वे कहते हैं कि दुनिया वाले कल्याणकारी को पापकारी और पापकारी को सदाचारी बतलाते है। उन्होंने अन्धानुकरण की इस प्रवृत्ति को भी सामाजिक जीवन के लिए एक अभिशाप ही माना था, क्योंकि इसके कारण समाज में सम्यक गुणों के प्रति सन्निष्ठा की स्थापना संभव नहीं थी। ऋषिभाषित और स्त्री-पुरुष संबंध __ ऋषिभाषित के सामाजिक चिंतन में स्त्री और पुरुष के पारस्परिक संबंध को लेकर भी चर्चा हुई है। यह सत्य है कि ऋषिभाषित के कुछ ऋषि ऐसे हैं, जो नारी की अपेक्षा पुरुष की ज्येष्ठता और श्रेष्ठता को स्वीकार करते है। ऋषिभाषित के बाइसवें अध्ययन में गद्रभाली नामक ऋषि स्पष्ट रूप से यह स्वीकार करते हैं कि धर्म पुरुष प्रधान है। वे कहते हैं कि धर्म पुरुष से स्थापित होता है, वह पुरुष प्रधान, पुरुष ज्येष्ठ, पुरुष कल्पित, पुरुष प्रद्योत्ति, पुरुष समन्वित और पुरुष को केंद्रित करके रहता है। इस प्रकार यहाँ धार्मिक जीवन में भी पुरुष को प्रधानता दी गई है। इसी अध्याय में नारी निंदा भी विशेष रूप से देखी जाती है, इसमें कहा गया है कि वे ग्राम और नगर धिक्कार के योग्य है, जहाँ पर महिला शासन करती है और वे पुरुष भी धिक्कार के योग्य है, जो नारी के वशीभूत है। नारी निंदा करते हुए उसमें कहा गया है कि वह सर्प वेष्ठित लता के समान है, जो पुरुष को आकर्षित करके, उसे दु:खी बना देती है। उसे सिंहयुक्त स्वर्ण गुफा, विषयुक्त पुष्पों की माला, विष मिश्रित गन्ध-गुटिका तथा भंवरयुक्त नदी कहा गया है। वह मदोन्मत्त बना देने वाली मदिरा के समान है। वह कुल का नाश करने वाली, निधन का तिरस्कार करने वाली, सर्वदुःखों का प्रतिष्ठा स्थान और आर्यत्व का नाश करने वाली है। जिस ग्राम और नगर में स्त्रियाँ बलवान होकर बेलगाम घोड़े की तरह स्वच्छन्द होती है, वे वस्तुतः तिरस्कार के योग्य है। इस समस्त चर्चा से यह स्पष्ट होता है कि ऋषिभाषित के गद्रभाली ऋषि स्पष्ट रूप से नारी को हेय दृष्टि से देखते हैं। किन्तु इस आधार पर यह कल्पना कर लेना कि श्रमण परंपरा मात्र नारी निंदक है, उचित नहीं होगा। यह सही है कि श्रमण परंपरा के और विशेष रूप से जैन परंपरा के अनेक ग्रंथों जैसे-सूत्रकृतांग, तंदुलवैचारिक आदि ग्रंथों में अनेकों पृष्ठ नारी निंदा से भरे हुए हैं। किन्तु इस आधार पर उन ग्रंथों 3. इसिभासियाई, 4/13 4. पुरिसादीया धम्मा पुरिसपवरा पुरिसजेट्ठ पुरिसकप्पिया पुरिसपज्जोविता--1 वही, 22/1 6. वही, 22/12-6 7. वही, 22n -वही, 22/गद्यभाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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