Book Title: Rishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Author(s): Pramodkumari Sadhvi
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 150
________________ 148 डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी परिभ्रमण करता है। उन्होंने इस कर्म रूपी रस्सी से मुक्त होने के लिए कर्म के वैचित्र्य को जानना और समाधि को प्राप्त करना आवश्यक माना है। समाधि ही वह साधन है जिसके द्वारा कर्मों से मुक्त हुआ जा सकता है।४८ २५. अम्बड का संयम साधना मार्ग ___ अम्बड ऋषि के अनुसार जितेंद्रिय और क्षीण कषाय होना ही साधना का लक्ष्य है। वे कहते हैं कि "यह क्षीण कषायता और जितेन्द्रियता राग रहित मोह विजेता व्यक्ति मे ही पूर्णतः होती है। राग युक्त आत्मा में तो वह आंशिक रूप से ही हो सकती है।'' इसका तात्पर्य यह हुआ कि मोह और राग से रहित होना ही साधना का मार्ग है। जो आत्मा वासना जनित पाप कर्मों में लिप्त है, वह पराजित आत्मा है इसके विपरीत जो पाप कर्म से विमुक्त है वे आत्मजयी है।५° उपर्युक्त विवरण के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि अम्बड ऋषि राग-द्वेष के प्रहाण पर ही अधिक बल देते हैं, किन्तु इसके लिए वे जितेन्द्रियता या संयम को आवश्यक मानते हैं। उनकी दृष्टि में संयम ही साधना का सार है और यह संयम वीतरागता की स्थिति में फलित होता है। २६. मातंग ऋषि का अध्यात्म मार्ग मातंग ऋषि अपनी साधना पद्धति में आध्यात्मिक दृष्टि का निर्देश करते हैं। वे कहते हैं कि "जो अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखता है, जो सत्य का द्रष्टा है और शील का प्रेक्षी है, वही सच्चा ब्राह्मण है। पुनः वे कहते हैं कि जो संयम रूपी हल से और ध्यान रूपी तीक्ष्ण फल से, आत्मरूपी क्षेत्र को परिशुद्ध करके, तप रूपी बीज बोता है, वह संवर रूपी फाल को प्राप्त करता है। अहिंसा ही जिसका आचरण है-ऐसी सर्व सत्वों के प्रति दया भाव की धारक कृषि को, जो भी करता है, वह चाहे ब्राह्मण हो चाहे क्षत्रिय, वैश्य अथवा शुद्र हो विशुद्धता को प्राप्त होता है। "५२ इस समग्र चर्चा का निष्कर्ष यही है कि जो आध्यात्मिक मलों को दूर कर के सर्व सत्वों के प्रति कारूण्य से युक्त होकर अहिंसा का पालन करता है, वह मुक्ति का अधिकारी बनता tho 47. इसिभासियाई, 24/37 48. वही, 24/38 49. वही, 25/4 गद्यभाग 50. वही, 25/6 गद्यभाग 51. वही, 26/6 52. वही, 26/85 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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