Book Title: Ravisagarji Jivan Charitra Shok Vinashak Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Buddhisagar

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Page 17
________________ गाथा. तेधनातेसाहु तेसिं पसंसा सुरोहिं किज्जंति जेसिकुड्डवमझे पुत्ताइ लिंति पवऊं ॥१॥ भावार्थ-जेना कुटुंबमाथी पुत्रादिकोए दीक्षा लीधीछे. ते पुरुषोने धन्य छे. तेज श्रेष्ट छे. अने तेमनी प्रशंसा देवताओए करवा लायक छे. वळ। कर्ष छ के श्लोक. सर्वेषामपिपापानां प्रव्रज्याशुद्धिकारिका जिनोदिवाततःसैव कर्त्तव्याशुद्धिगिच्छता।।१॥ ददतिब्राह्मणादिभ्य एकेपापविशुद्धये गोदानस्वर्णदानंच भूमिदानान्यनेकया ॥२॥ आत्मशुद्धयर्थमेवान्ये कारयतिव्रतानपि

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