Book Title: Ravisagarji Jivan Charitra Shok Vinashak Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Buddhisagar
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श्रीनिधानसागरजी तथा मयासागरजीए पाली, जोधपुर, अजमेर, रतलाम, इंदोर विगेरे ठेकाणे विहार करी घणा जीवोने संवेग पक्षमा आण्या. अने जैन शाशन दीपाववा लाग्या.सं. १८९३ नी सालमां श्री मयासागरजी मारवाडथी गूजरात तरफ पधार्या. गूजरातमां श्री मयासागरजा पालीना रहेवाशी श्रावकने दीक्षा आपी नेमसागरजी नामना प्रथम शिष्य कया. तेज श्री नेमसागरजी महाराजजीनो मेळाप रवचंदजीने थयो, रवचंद जी शास्त्री अभ्यास करवा लाग्या. अने वखते उपदेश पण सांभळता हता.
उपदश. आ जीव चोराशीलाख जीवायोनि भमतां म

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