Book Title: Ravisagarji Jivan Charitra Shok Vinashak Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Buddhisagar
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ग्या. अरिहंत सिद्ध साहु एम पण कहेवा लाग्या. महाराजश्री उपयोगथी सांभळतां सांभळतां ध्यानारुढ थइ संवत १९५४ ना जेठ वदी ११ अगआरसना रोज सवारना पहोरमां ६ || वाग्याना आशरे अमृतसिद्धि योगमां चढता पहारे आ क्षणीक देहनो त्याग करी श्री रविसागरजी उत्तम गतिने भजनारा थया. संघमां शोक.
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महाराजजीना मरणथी आखो संघ अत्यंत दीलगीर थयो. केटलाक रुदन करवा लाग्या. मुनिराज श्री सुखसागरजी पण स्नेहना वशथी अश्रुधारा वरसाववा लाग्या, अने विलाप करवा लाग्या के हे परमगुरु हवे मने सारी सारी कोण शीखामणो आपशे. अने मारु आत्महित कोना अवलंबनथी थशे. अरे

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