Book Title: Ravisagarji Jivan Charitra Shok Vinashak Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Buddhisagar
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अल्पमति हूं बाळबूद्धि, गूरु कृपाथी आज; वाणी मुज सफली थइ, सिच्यां सघलां काज. ॥३॥ महिमावंत महंत ए, रविसागरराय; ध्यान हृदय धरतां थकां, मनवंछीत सूख थाय. ॥४॥ संवत् विक्रम ओगणीश, अठावननी साल; फागण वदी प्रतिपदा, पूर्ण चरित्र रसाल. ॥६॥ नगर पादरा शोभतुं, शांतिनाथ जयकार; तास पसाये चरित्र ए, रचतां सुख निरधार.॥६॥ उत्तमना गुण गावतां, प्रगटे आत्म स्वरुप; बुद्धिसागर सूख लही, पामे शिव चिद्रूप. ॥७॥

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