________________
दिखाकर रात्रि में हुये द्वंद्व युद्ध की चर्चा की। तब श्रीकृष्ण ने अपने वस्त्र में बांधे हुये इस पिशाच को खोलकर दिखाया और कहा कि यह वही पिशाच है। आप दोनों ने पहचाना नहीं। वास्तव में यह क्रोध पिशाच है। इसका स्वभाव ही यह है कि क्रोध करने पर यह बढ़ता है और शान्त रहने से यह शक्तिहीन होता चला जाता है।
उपरोक्त कहानी कितनी सत्य है यह तो हमें नहीं मालूम किन्तु इसका अभिप्राय अवश्य ही विचार करने योग्य है। क्रोध का मुकबला क्रोध से नहीं हो सकता, यह तो अग्नि में घी का कार्य करेगा। क्रोध का मुकाबला शान्ति से ही किया जा सकता है। यदि हम स्वयं शांत रहंगे ता सामने वाला अधिक दर क्राधित नहीं रह सकता। वह भी जल्दी ही शान्त हा जायेगा।
क्षमा आत्मा का स्वभाव है। यह धर्म में प्रवेश करने का प्रथम द्वार है। धर्म में प्रवेश करने की प्रथम शर्त है, क्रोध का त्याग | यदि हम क्राध के साथ धर्म में प्रवेश करेंगे तो देव-शास्त्र-गुरु की विनय नहीं कर पायेंग | क्रोध क्षमाधर्म का विरोधी है। क्रोध रूपी विभाव आपके हृदय में बैठा हुआ है, उसे हटाआ और उसकी जगह क्षमा को प्रतिष्ठित करो | क्षमा कहीं गई नहीं, क्षमा कहीं से आयेगी भी नहीं। वह तो आपकी आत्मा में ही विद्यमान है। अतः क्रोध को छोड़कर, क्षमाधर्म को अपनायें। क्रोध ही समस्त अनर्थों की जड़ है।
जितना अनर्थ शेर, सर्प, अग्नि, शत्रु, जहर हमारा नहीं करते, उससे कई गुणा ज्यादा अनर्थ क्रोध करता है। यह क्रोध विकार उत्पन्न करने में मदिरा का मित्र है, भय उत्पन्न करने में सर्प का प्रतिबिम्ब है, दूसरों को जलाने में अग्नि का भाई है और चैतन्य को नष्ट करने में विषवृक्ष के समान है, अपनी कुशलता की इच्छा करने
29)