Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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४. कल्पसिद्धान्तसप्र
सागम । र० काल X | ले० काल x 1 पूर्ण
[ सिद्धान्स एवं चर्चा
***** | पत्र सं७ ५२ । प्रा० १०२४ इंच भाग प्राकृत विषय
०६६।
विशेष – श्री जिनसागर सूरि की भाशा से प्रतिलिपि हुई थी। गुजराती भाषा में टीका सहित है ।
अन्तिम भाग – मूलः सेां कारणं तें समय
मित्ताणं पडि बुद्धा ।
अर्थ - तिरपद काल
गर्भावहार कालs तिलइ समय गर्भापाए अकी पहिली श्रमा भगवन श्री महावीर विह्न ज्ञानेकरी सहित 5 जिहंता ते मी इमजि जागा नेहरियो म परियक्ताय । पीड सिलानी कूखह संक्रमावित्यई । अन जिगि क्लासह संक्रमावर ने वेला न जाई। अपहरणकाल अंत हर्न संविग्रह अन उपयोग का अंतर्मुहूर्त्त प्रमाणा । पर स्थनाउपयोग धिक महरा काल सूक्ष्म जानिब श्राचारांग मांहि कहिउप संहरण काल रिणि जाड पर ए पाठ सगलई नहीं । ते भरणी श्राबीनि हो । तिलानी कू खि श्राया पंछी जागइ । जिशी रात्रि श्रमण भगवंत श्री महाबीर देवासांदा ब्राह्मणी सुखशय्या मूर्ती कांई मूती कागती । यहं वउदार स्फाटं जिस्या पूर्व वर्णव्या तिस्या बउवह महास्वप्न त्रिशला क्षत्रियाणी पड माहाहा खासी लोधा । इसउ स्वप्न देखि जागी । जे भरणी कल्याण कारिया निरूपहहन । धन धान्य ना करसाहार । मंगलीक | स श्री कजिम घरि बाजह जीप घर पहुंता । हिवद त्रिशला भत्रियाणी जिरगड पुकारह सुपिना देखिस् ते प्रस वाचस्या । य श्री कल्प सिद्धान्तनी वाचना तराइ अधिकार | एवं भाग्यवंत वान यह शील पाल रूप तद भावना 'भावई एवंविध धर्म कर्त्त करई ते श्री देवगुरु तगुज प्रसाद देवन प्रधिकार विधि चैत्यालय पूज्यमान श्री पवनाथ तसा प्रसावि गुरुनी परंपराय सुविहित चक्रचूडामति श्री उद्योतनसूरि श्री वद्धमान सूरि थी। श्री जिनेश्वर सूरि । श्री अभयदेव सुरि युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि श्रीमज्जिन कुदालसूरि श्री इकम्बर पातिसाहि प्रतिबोधकं युगप्रधान श्री प्रभाकर श्री मज्जिनसिंह सूरि तट्टे प्रभाकर भट्टारक श्री जिनसागर सूरिनी आना प्रवर्त। श्रीरस्तु । संस्कृत में इलोक तथा प्राकृत में कई जगह गाथाएँ दी हैं । ४८. कल्पसूत्र ( भिक्खु अभय ) ... .....!
सज्जन
'
विषय- श्रागम । २० काल X | ले० काल X | ० ० ६०६ । पूर्ण
विशेष – हिन्दी टब्बा टीका सहित है ।
४६. कल्पसूत्र - भद्रबाहु पत्र सं
२. काल X | ० काल सं० २०६४ | मधु ।
पत्र नहीं हैं ।
०४१ ० १०९४३ इख । भा० प्राकृत | महार
१९६ । प्रा० १०x४ इंच भा० प्राकृत विषय-भागम ३६ । भण्डार ।
विशेष - २ रा तथा ३ रा पत्र नहीं है। गाथाओंों के नीचे हिन्दी में अर्थ दिया हुआ है।
४०. प्रति सं० २ । पत्र सं० ५ से ४०२ | लेकालX पूर्ण वे० सं० १९८७ । ट भण्डार
विशेष – प्रति संस्कृत तथा गुजरानी छाया सहित है। कहीं २ वा टीका भी दी हुई है। बीज के कई