Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay

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Page 7
________________ रायपसेणइय सुत्तं प्रवेशक ॥७॥ ोप जणावेलां नामोने विशेष प्रामाणिक समजीने अने प्राचीन पाठने आधारभूत राखीने 'रायपसेणइअ' नाम मान्य राण्य छे. जो के नंदीसूत्रना मुद्रित पुस्तकमां 'रायपसेणि' पाठ छे, पण सूत्रोनुं संपादनकाम जोतां ए पाठनी प्रामाणिकता विशे शंका रहे है. अने आ लखती वखते नंदीसूत्रनी लखेली पोथीओ जोवानो समय रह्यो नथी. पटले ज में गंधहस्ती अने मनिचंटसरिने मायाले दीघनिकायमा राजा प्रसेनजितनो उल्लेख आवे छे पथी आ पुस्तकनी अभिधेय वस्तुनो संबंध राजा पायासिना बहाराजा पसे. नजित साथे जोडापलो होय. जो के दीघनिकायमा पण प्रश्नकार तो पायासि ज छे, छतां तेना वडाराजा तरीके राजा प्रसेनजितने नाम होवाथी प्रस्तुत सूत्रनुं नाम पण ते नामे जैन परंपरामा प्रचलित थयु होय. जे आचार्योए 'राजप्रसेनकीय' अथवा 'राजप्रसेनजित' नामो लख्यां छे तेमनी शो कल्पना हशे ते तो केम कहीशकाय? आजकाल वर्तमान रायपसेणइअमां जे हकीकत उपलब्ध छे ते ज हकीकत जो उक्त आचार्य सिद्धसेन गणि अनेकनिक सरिना समयमा उपलब्ध थता रायपसेणइअमां होय तो जे सूत्रमा राजा प्रसेनजितनु नामनिशान पण नथी आवमाना । आचार्योए राजप्रसेनकीय अथवा राजप्रसेनजित एवं जे आप्यु छे ते उपरथी नीचेनो बे कल्पनाओ उठे [१] विवरणकार घणी जग्याए जणावे छे के प्रस्तुत सूत्रमा वाचनाभेदनी बहुलता छे. प दृष्टिप जोतापमानामा पूर्वाचार्योना वखतनी वाचनामां जरूर कोई प्रकारनो पाठभेद होय एम मानवु वधारे पडतुं नथी. पटले उपलब्ध वाचनामां राजा प्रसेनजितनो उल्लेख न होवा छतां ए पूर्वाचार्योना वखतनी वाचनामा राजा प्रसेनजितनो उल्लेख होय एम संभवी शके छे. अने प उल्लेखने आधारे उक्त आचार्योप ए सूत्रनुं नाम 'राजप्रसेनकीय' अथवा 'राजप्रसेनजित' ए, लघु होय तो संगत कवाय. आवा बहथत अने आगमधर आचार्योने माटे एवं कहेवू के तेमणे उक्त नामोनी कल्पना मात्र वर्णविकारनी पिपज को अने आगमनी अंदरनी वस्तुनी उपेक्षा करी छे ए, एमर्नु विशाळ ज्ञान जोता, अजुगतुं लागे छे. [२] पम पण होई शके के मूळ सुत्रमा राजा प्रसेनजितनो उल्लेख पमना वखतमा न रह्यो होय, पण पीप ल lainEducationtent For Private 3 Personal Use Only w jainelibrary.org

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