Book Title: Raipaseniya Suttam Author(s): Bechardas Doshi Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay View full book textPage 6
________________ प्रवेशक रायपसेणइय सुत्तं ॥६॥ | जैन परंपरामा प्रचलित छे. ए जोतां प्रस्तुत रायपसेणइअ विक्रमना छठा सैका पहेलानु ठरे. आ चोथी गणना. आम पकंदर जोता प्रस्तुत ग्रन्थनो मोडामां मोडो समय छट्ठो सैको तो खरो ज. ग्रन्थनुं नाम 'नंदीसूत्रना मुद्रित पुस्तकमां रायपसेणिय' एवं नाम मळे छे, त्यारे मारी पासेनी लिखित पोथीओमा केटलेक स्थळे 'रायपसे णइभ' नाम मळे छे. विवरणकार श्रीमलयगिरिसूरि 'रायपसेणीअ' नाम स्वीकारे छे. अने तेनो संबंध संस्कृत 'राजप्रश्नीय' साथे जोडे छे. 'प्रश्न' शब्दनां प्राकृत उच्चारण 'पण्ह' अने 'पसिण' बन्ने थाय छे, परन्तु 'पसेण' एवं थई शकतुं नथी. उच्चारण शास्त्रनी वैज्ञानिक रीतने ध्यानमा लईए तो 'पसिण' रूपसुधीन परिवर्तन उचित लागे छे, अने प्राकृत व्याकरणनी दृष्टिप पण एज घटमान लागे छे छतां 'आर्ष' कहीने 'पसेण' रूपनी पण संगति करवा ललचाईए तो 'आप'ना अपवादनो वधारे पडतो उपयोग थयो गणाय. अने 'आप'ने नामे शुशिअशुद्धिनो विवेक क्यां समजवो ते नकी नहीं थाय. आ सूत्रमा 'राजाप करेल प्रश्नो छे' एम समजीने विवरणकारे सूत्रना नामनो संबंध संस्कृत 'राजप्रश्नीय' शब्द साथे योज्यो जणाय छे. पमनी वात तो खरी छे, परन्तु प्रस्तुत विवरणकार करतां पूर्वना आचार्य तत्वार्थवृत्तिकार गंधहस्ती-आचार्य सिद्धसेन आ सूत्रनु नाम 'राजप्रसेनकीय' जणावे छे, अने वादी देवसूरिना गुरु श्रीमुनिचंद्रसूरि 'राजप्रसेनजित' जणावे छे. में प्राचीन आचा १ प्रस्तुत रायपसेणइय सुत्तमा पण १६५मी कंडिकामां 'नंदिसुत्त'नो उल्लेख आवे छे. ए उल्लेख त्यां ज्ञाननी बधी हकीकत जाणवा माटे संकलनाकारे उमेरेलो छे एम समजवानुं छे. नंदिसुत्त देववाचके करेलु छे ए निश्चित छे माटे केशीश्रमणना मुखमांनो ऐ उल्लेख 'रायपसेणइय' अने 'नंदिसुत्त'ना पौर्वापर्यना साधन तरीके निरुपयोगी छे अथवा नंदिसूत्रमा पण एक 'नंदी' सुप्रनो उल्लेख छे एटले आ वर्तमान नंदिसूत्र करतां कोई बीजुं प्राचीन 'नंदी' होय अने तेनो उल्लेख केशीश्रमण करता होय तो ते पण घटमान खरं. JainEducationindme For Private Personel Use OnlyPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 536