Book Title: Prey Ki Bhabhut
Author(s): Rekha Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 11
________________ | पिता सहदेव ने दानमान और सम्मान से आगत बारातियों का स्वागत |माता-पिता ने पुत्री को अनेक प्रकार की शिक्षा दी और समझायासत्कार किया। अपने आतिथ्य द्वारा सबको संतुष्ट कर दिया। दहेज में |बेटी अब तुम्हारा घर महेश्वर का है|कन्या वही उत्तम मानी प्रचुर धन दिया ओर नाना प्रकार के वस्त्राभूषण समर्पित किये। वृद्धजन, पुरोहित, सार्थवाह, सामन्त, नेता आदि सभी इस संयोग जाती है, जो अपने पितृकुल का नाम उज्जवल करे । तुम सर्वदा सास-ससुर आदि गुरुजनों की सेवा करना, पति की की प्रशंसा कर रहे थे। उनके मुख से आशीष ध्वनि निकल रही थी कि आज्ञा के अनुरूप चलना और समस्त परिजनों को संतुष्ट, जिस प्रकार चन्द्रिका सर्वदा चन्द्रमा के साथ निवास करती है, उसी रखने का प्रयास करना। प्रकार यह नर्मदा सुंदरी महेश्वर के साथ सुशोभित हो। TU7. नर्मदा सुन्दरी ने सिर झुकाकर गुरूजनों की शिक्षा स्वीकार की। मंगला चार के पश्चात् बारात को विदा किया गया। कई दिनों तक चलने के पश्चात् वे दम्पत्ति वर्द्धमानपुर में आये। महेश्वर की माता ऋषिदत्ता ने अपने भवन को सज्जित कराया। तोरण बंधवाये, बंदनमालाएं लटकाई गई और मंगल तूर्य बजाये जा रहे थे और वधु के स्वागत का पूरा प्रबन्ध किया गया था। आज ऋषिदत्ता बहत प्रसन्न थी उसकी अन्तरात्मा तप्त हो गयी थी। वह रवि तुल्य सुन्दरी वध को प्राप्त कर कृतार्थ थी। अब उसे अपना जीवन सार्थक प्रतीत हो रहा था। उसे भवन में रणितनुपरों की ध्वनि सुनाई पड़ रही थी। नर्मदा सुन्दरी इस नये परिवार में आकर अन्य कुल वधुओं के समान कार्य संलग्न थी। पति-पत्नि में धार्मिक-दार्शनिक विचारधाराओं को लेकर वाद-विवाद हो जाता था।एक दिन महेश्वर ने कहासुन्दरी! तुम अपने श्रमण-धर्म की प्रशंसा करती रहती हो । बताओं हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, और परिग्रह-संचय का त्याग करने से क्या व्यापार चलेगा? व्यापार करने के लिए उक्त सभी पाप करने पड़ते है। धनार्जन करना कोई सामान्य बात नहीं है। इस के लिए छल प्रपंच करना आवश्यक है जो धर्मात्मा बनना चाहता है, उसे चाहिए कि वह व्यवसाय त्याग कर वन में जाकर तपश्चरण करने लगे। जैन चित्रकथा

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