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शील आत्मा का धन है, इस धन की रक्षा के नर्मदा सुन्दरी संसार के विषयों से ऊब चुकी की थी। उसे जगत की स्वार्थ परता लिए देह का भी त्याग किया जा सकता है। प्रत्यक्ष दिखलाई पड़ रही थी। अतः उसने एक दिन आचार्य, महाराज के समक्ष शील के रक्षित रहने पर भी गुण रक्षित रहते |पहुँचकर अपना पंचमुट्ठी केश लुञ्चन किया ओर ‘णमो अरहंताणं' कह कर आर्यिका हैं। शील के प्रभाव से अनेक प्रकार की दीक्षा प्राप्त करने की याचना की। |विभूतियाँ प्राप्त होती रहती है। विद्या, मंत्र,
औषधि आदि की सिद्धि शील के कारण होती है। नारी की सबसे बड़ी सम्पत्ति शील है। अतः मैंने अपने इस धन की रक्षा अनेक प्रकार की कठिनाईयों को सहन कर भी की है।
'परात
दीक्षित नर्मदा जनकल्याण और आत्मकल्याण में प्रवृत्त हो गयी। उसने गांव-गांव जाकर सोयी नारी जाति को जगाया । ज्ञान का अलख जगाकर बहनों को ज्ञानीध्यानी बनने के लिए प्रेरित किया।
उसने बतलाना आरम्भ किया कि- .
-नारी भी पुरुष के समान अविवाहित रहकर लोक सेवा सकती है। जीवनं शोधन में वह किसी से पीछे नहीं रह सकती। पुरुष समाज स्वयं ही नारी के सतीत्व का अपहरण करता है। वह स्वयं पाप या दुराचार कर नारी के ऊपर पाप आरोपित कर अपने को निर्दोष बतलाता है। अतएव नारियों को अपने ऊपर स्वयं विश्वास करना होगा। जब हम बाहर की प्रवृत्तियों से हटकर अपने भीतर का दर्शन करने लगते हैं, तो हमें अपार आनन्द प्राप्त होता है। बहनों को अपनी दृष्टि में परिवर्तन करना होगा, बर्हिमुखी होने के स्थान में उसे अन्तर्मुखी बनाना होगा। मन की पवित्रता और ज्ञान का आलोक ही जीवन का चरम ध्येय होना चाहिए। जब तक प्रेय को भस्म बनाकर उसका व्यवहार नहीं किया जायेगा। तब तक श्रेय की उपलब्धि नहीं हो सकती। प्रेय का होलीदाह ही श्रेय का मंगल प्रभात है। प्रेय की भभूत मर्दन से ही अन्तर्मुखी प्रवृत्ति का विकास होता है।
प्रेय की भभूत