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दण्डधारियों ने अन्त पुर में नर्मदा को पहुँचा दिया, पर उन्मत्तावस्था के कारण सभी परिचारकों ने राजा से निवेदन किया किअन्तःपुर वासी उसके व्यवहार से खिन्न थे। कभी तो वह लोगों की ओर झपटती, जिससे डर कर लोग भाग जाते । कभी किसी को मारती.कभी हँसती और कभी गाली देती।
वह सुन्दरी पागल है। वह अन्तःपुर में उपद्रव मचा रही है। कभी वह किसी रानी के ऊपर कीचड़ डालती है, कभी पुष्प तोड़कर उछालती है और कभी अर्ध नग्नावस्था में परिभ्रमण करती है।
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राजा ने पागलपन को दूर करने वाले व्यक्तियों को बुलाया। मंत्र, तंत्र जिन देव वीरदास का मित्र था। उसने नर्मदा को वीरदास के यहाँ और झाड़-फूंक शुरू हुई.पर कोई लाभ नहीं हुआ। उसका पागलपन | सकुशल पहुँचा दिया । यहाँ आकर नर्मदा सोचने लगीउत्तरोत्तर बढ़ने लगा। अब उसका अन्तःपुर निवास करना कठिन हो
वासना का पंक व्यक्ति की अन्तरात्मा को दूषित कर देता है, पर जब गया। अत: उसे अन्तःपुर से मुक्त कर दिया। नर्मदा सुन्दरी अपने
इस पंक से साधना कर पंकज विकसित होता है, तो व्यक्ति अपने शरीर पर कीचड़ लपेट कर एक खप्पर लिए हुए घर-घर भिक्षा
उत्थान का मार्ग प्राप्त कर लेता है। जीवन का सत्य साधना में है, माँगते हुए विचरण करने लगी। अपनी उन्मादावस्था को दिखलाने के लिए कभी वह नाचती, कभी रोती, कभी गाती और कभी हँसती थी।
वासना में नहीं । विषय कीट अपना तो पतन करता ही है, सम्पर्की व्यक्ति एक दिन जिन देव नामक श्रावक मिला। इस श्रावक से उसने अपने
को भी पाप के गर्त में गिरा देता है। वास्तव में कषाय त्याग करने पर ही मन की समस्त व्यथा कह सुनाई उसने बतलाया कि शीलव्रत की रक्षा
प्रभुत्व का मद छूटता है, छिपाव या दुराव नहीं रहता, हिंसा और संघर्ष के हेतु पागलपन का स्वांग उसे करना पड़ रहा है। वास्तव में वह
नहीं रहते और पराधीनता से छुटकारा प्राप्त कर स्वातंत्र्यं की प्राप्ति हो |बिल्कुल ठीक है। इस संसार के विलासी व्यक्तियों के कारण उसका।
जाती है। संसार की मृग मरीचिका व्यक्ति को पीड़ित रखती है। मन उब चुका था और वह श्रमण दीक्षा लेने के लिए उत्सुक थी
जैन चित्रकथा