Book Title: Prey Ki Bhabhut
Author(s): Rekha Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ देव! इस नगर में एक ऐसी नारी है, जो त्रिलोकी की कुमार! वह रमणी हरिणी के पद पर यह समाचार नर्मदा सुन्दरी को भी सुन्दरी है और देवांगनाओ के रूप-सौन्दर्य को भी रत्न कौन है? जिस प्रतिष्ठित प्रधान अवगत हुआ। वह सोचने लगीतिरस्कृत करती है। वह किसी को भी अपना| की आपने अब तक गणिका रूपवैभव समर्पित करने को तैयार नहीं है। ऐसा प्रतीत प्रशंसा की है। चक्रवाक जल में पड़ने वाले अपने होता है कि प्रजापति ने उसका निर्माण आपके लिए ही प्रतिबिम्ब को चक्रवाकी समझकर किया है। अतः महाराज!रूप, यौवन, राज्य और धन आशान्वित होता है, पर चंचल तरंगे से क्या लाभ यदि वह सुन्दरी प्राप्त न हुई। आपका उस प्रतिबिम्ब को भी शीघ्र विघटित कर अन्त पुर उसी रमणीरत्न से सुशोभित हो सकता है। देती है। विधाता बड़ा ही निपुण है। मैं जब तक एक दुःख समुद्र से पार नहीं हुई, तब तक दूसरा पहाड़ टूट पड़ा। an TTTTTTON FALLITA mins यहाँ का बब्बर राजा अत्यन्त क्षुद्र, क्रोधी, अधर्मी, नारकी, इस प्रकार संताप करती हुई नर्मदा शील रक्षा के लिए विचलित महापापी और क्रूर है। इससे अपने शील की रक्षा करना बहुत हो उठी । एका-एक उसे धनेश्वर का कथानक स्मरण हो आया। कठिन है। अतएवं मैं कहाँ जाऊं, क्या करूँ, किससे अपने मन के | वसन्तपुर नगर में धनपति सेठ का पुत्र धनेश्वर रहता था। वह दुःख को कहूँ, कूछ समझ में नहीं आता। यह सत्य है कि प्राणों की| दुर्भाग्य वश दरिद्र हो गया और दरिद्रता से पीड़ित होकर अपेक्षा शील अधिक मूल्यवान है। अरे भाग्य तूने मुझे इतना सौन्दर्य | |अत्यन्त दुःख प्राप्त करने लगा । एक दिन उसने सोचा कि परदेश क्यों दिया? यह सौन्दर्य ही तो मेरी विपत्ति का कारण बना हुआ है। गमन करने पर ही यह दारिद्रय नष्ट हो सकता है। वह अपने विचारानुसार अपने परिवार की व्यवस्था करके दूर देश चला गया। जैन चित्रकथा

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36