Book Title: Prey Ki Bhabhut
Author(s): Rekha Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 29
________________ उन्होंने नर्मदा से निवेदन किया......... देवी! आज से राजा ने तुम्हारे लिए हरिणी का भवन परिवार परिचारक, वैभव और मान्यता प्रदान की है। तुम स्वेच्छा से इन वेश्याओं का अनुशासन करती हुई इस वैभव के साथ निवास करो। आज से समस्त वैभव तुम्हारा और तुम इस गणिका मोहल्ले की स्वामिनी हो । तुम्हारी स्वामिनी कहाँ गई है ? नर्मदा का अनुरोध करिणी ने स्वीकार कर लिया और नर्मदा पूर्ववत् धर्मध्यान करती हुई काल यापन करने लगी। एक दिन सजधजकर एक धनिक युवक आया और पूछने लगा जैन चित्रकथा नर्मदा पंचकुल के इस प्रस्ताव को सुनकर अत्यधिक दु:खी हुई। वह सोचने लगी कि पूर्वकृत कर्मों का ही यह विपाक है। जिससे इस प्रकार के नीच कर्म को करने के लिए मुझे प्रेरित किय जा रहा है। उसने अपने मन में नाना प्रकार से पश्चाताप करते हुए करिणी से कहा Gog ८. सखी, तुम मेरी अत्यन्त प्रिय और हित चिन्तिका हो। मेरे मन की समस्त परिस्थिति को जानती हो। अतएव तुम उक्त पद पर प्रतिष्ठित हो जाओ। जो व्यक्ति आया करे उनकी तुम्हीं सेवा करना मैं आपके यहाँ किसी कोने में छिपी पड़ी रहूँगी। महानुभाव, मैं इस समय प्रधान गणिका के पद पर प्रतिष्ठित हूँ। आप मुझे पहचानने में भूल कर रहे हैं। के TO 27

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