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हरिणी ने उसे नाना प्रकार की यातनाएं देना प्रारम्भ किया। उसने विट पुरुषों को बुलाकर बलपूर्वक उसके सतीत्व अपहरण की व्यवस्था की, किन्तु पुण्योदय से नर्मदा अपने सतीत्व में अटल बनी रही। वह दिन-रात पंच नमस्कार मंत्र का स्मरण करती हुई भोजन पान छोड़कर भगवत् ध्यान में लीन रहने लगी।
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वीरदास को नर्मदा सुन्दरी के चले जाने से बहुत दुःख हुआ और उसने उसको सर्वत्र तलाश की। जब उसे नर्मदा सुन्दरी का पता न चला तो वह उस नगर के राजा के पास पहुँचा और कहने लगा
जैन चित्रकथा
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देव! मेरी बेटी का कोई अपहरण करके ले गया है। उसकी प्राप्ति के लिए उसके वजन के बराबर सोना देने के लिए तैयार हूँ। कृपया अपने गुप्तचरों द्वारा मेरी बेटी का पता लगवाने का कष्ट कीजिएगा।
इसी मोहल्ले में करिणी नामकी वैश्या भी रहती थी। उसे नर्मदा पर दया आ गई और उसने हरिणी से निवेदन किया किनर्मदा को भोजन बनाने के लिए मेरे यहाँ नियुक्त कर दिया जाये। मैं इसे तब तक समझा बुझाकर यथार्थ मार्ग पर भी का प्रयास करूँगी।
हरिणी ने करिणी की बात स्वीकार कर ली और नर्मदा पाचिका का कार्य करने लगी। अब वह प्रभु चरणों का ध्यान करती हुई अपने बनाये हुए भोजनों से शरीर धारण के हेतु भोजन ग्रहण करती। इस प्रकार उसका जीवन व्यतीत होने लगा।
राजा ने लगातार तीन दिनों तक नगर में घोषणा कराई कि -
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व्यक्ति नर्मदा का पता बतलायेगा या उसे ले आयेगा, उसे नर्मदा के वजन के बराबर सोना दिया जायेगा।
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जब नर्मदा का कुछ पता नहीं लगा तो वीरदास मूर्छित हो गया इसी समय उसके साथी वहाँ आये और उन्होंने चन्दन द्रव छींटकर उसे चेतन किया। स्थिति बहुत खराब हो गई है, वह नर्मदा के न मिलने से वीरदास की कभी रूदन करता है, कभी चिन्ता के कारण लम्बी सांसे लेने लगता है और कभी विलाप करता हुआ कहता हैबेटी ! तुम मुझे शुन्यद्वीप में प्राप्त हो गयी, अब कहाँ पर हो, क्यों नहीं आकर मुझे सांत्वना, देती हो ।
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