Book Title: Prey Ki Bhabhut
Author(s): Rekha Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 25
________________ हरिणी को वीरवास का बर्ताव बहुत ही बुरा लगा। जब दासियाँ वीरदास को आमन्त्रित करने आई तो उनकी दृष्टि नर्मदा पर पड़ी। नर्मदा के अपूर्व सौन्दर्य को देखकर वे आश्चर्य चकित हो गई और उन्होंने इस बात की चर्चा अपनी स्वामिनी से की हरिणी ने दासियों को नर्मदा को फुसला कर भगा लाने के लिए भेजा वे नर्मदा के निकट पहुँची, पर वह उनकी बातोंनें न फैंसी ये दासियाँ किसी प्रकार वीरदास के पास गई और नौकरों को बदले में स्वर्ण मुद्राएं देकर उन लोगों से वीरदास की मुद्रा ले ली। नर्मदा सुन्दरी को उन दासियों पर आशंका तो पहले से ही थी पर वीरदास की मुद्रा देखकर विश्वास करना पड़ा वह उनके साथ चल दी। वे उसे हरिणी के यहाँ ले गयी। नर्मदा सुन्दरी को वहाँ पहुँचने पर बहुत निराशा हुई। उसने पूछा मेरे तात कहाँ है? जैन चित्रकथा तुम्हारे तात की यहाँ क्या आवश्यकता है? यहाँ तो तुम्हारी जैसी सुन्दरी की आवश्यकता है, जो अपने रूप के जादू से सूर्य को भी परास्त कर सकती है। तुमने यह रूप कहाँ से प्राप्त किया है? Oooooo0000 एक दिन जब वीरदास बाहर गया हुआ था कि हरिणी की दासियाँ नर्मदा सुन्दरी के पास पहुँची और कहने लगीचीरदास हमारी स्वामिनी के यहाँ है, उन्होंने यह पत्र आपके पास भेजा है तथा पत्र में उनकी मुद्रा अंकित है। भेजा है तथा पत्र में उनकी मुद्रा अंकित है। तुम चुप रहो मेरे समक्ष अनर्गल बातें करना ठीक नहीं। तुमने धूर्तता पूर्वक मुझे यहाँ धोखे से बुलाया है। 23

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