Book Title: Prey Ki Bhabhut
Author(s): Rekha Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ इस रमणी को प्राप्त करने के लिए मुझे सर्वस्व त्याग करना पड़े, विवाह की तैयारियां की जा रही है। प्रात: काल नानाराग, गंध और तो भी कोई बात नहीं। मैं अपना धन-वैभव छोड़ सकता हूँ। उबटनों से उसे मज्जित किया गया है। विभिन्न प्रकार के कमल परागों। अपनी परम्पराओं से आगत प्यारी आराधना को छोड़ सकता हूँ। से अंगराग किया गया है। विभिन्न वाटिकाओं और उपवनों से यदि मैं इस रमणी को प्राप्त करने के लिए अपनी परम्परागत पुष्पावचय कराया गया है। मंगल वाद्यों से सारा नर्मदपुर मुखरित है। हिंसा को छोड़ने का अभिनय कर सकू तो मेरा विवाह अवश्य इस तोरण द्वार गोपुर, मण्डप और वेदियों से तटभूमि रमणीय हो उठी है रमणी से हो सकता है । में उस रमणी को किसी भी मूल्य पर प्राप्त स्थान-स्थान पर बालाएं अक्षत, कुंकुम मुक्ता और हरिद्रा से चौकपूर करने को तैयार हूँ। रही है। बारांगनाएं मंगलगीत गाती हुई उत्सव के आयोजन में संलग्न हैं। कहीं पूजा विधान चल रहे हैं उससे सारा वातावरण आनंद मंगल से युक्त है। 000 mm VRArAY ONur -32000cooconom8 उल्ल यह सोच कर उसने अपने मन में एक विचार स्थिर किया और अगले दिन सहदेव को अपने कपट व्यवहार द्वारा प्रसन्न कर नर्मदा के साथ विवाह करने की स्वीकृति प्राप्त कर ली। नैसर्गिक सुन्दरी नर्मदा आज अलंकृत होने से अनुपम प्रतीत होती है। उसके ललाट, वक्षस्थल और भुजाओं पर मनोयोगपूर्वक पत्रलेखाएं लिखी गयी है। अनेक हारों आभूषणों और कण्ठिकाओं से उसे सजाया गया है। स्वर्ग की अप्सरांए उसके सामने नत हैं इतना सौन्दर्य शायद ही एक स्थान पर देखा गया हो। महेश्वर को भी शोभित किया गया है | उसके शरीर का संस्कार भी अनेक प्रकार के सुगन्धित पदार्थों द्वारा सम्पन्न हुआ है। दिव्य वस्त्रा भूषण के साथ उसका सौंदर्य अनुपम प्रतीत हो रहा है। जो महेश्वर को देखता है, वह उसे एकटक दृष्टि से देखता रह जाता है। परिणय की बेला आ पहुँची। पंडितों और पुरोहितों ने मंत्रोचारण आरम्भ किये । हवन के सुगन्धित धूप से दिशाएं व्याप्त हो गई। विभिन्न वाद्यों की स्वरलहरियाँ, रमणियों के मृदुमन्द कंठों से मिलकर अपूर्वस्वर उत्पन्न कर रही थीं। नर्मदा का शीतल मृदुल हाथ महेश्वर के हाथ से जोड़ दिया गया। इस पाणिग्रहण के अवसर पर चारों ओर से मंगल और आशीर्वचनों की ध्वनि सुनाई पड़ने लगी। दिशाएं मंगल कामनाओं से व्यस्त हो गयी। आज दो आत्माएं एकाकार होने जा रही है। दोनों को हर्ष विषाद सदा के लिये एक रूप में परिणत हो रहा है। COCX SANE प्रेय की भभूत

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36