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जब नर्मदा सुन्दरी की नींद टूटी और अपने पास महेश्वर दत्त दिखलाई नहीं दिया तो उसका हृदय आशंका से भर गया। उसने उठकर इधर-उधर महेश्वर की तलाश की, जब वह उसे नहीं दिखलाई पड़ा तो उसका धैर्य टूट गया। उसने । रोना कल्पना प्रारम्भ कर दिया। वह अबला त्रस्त हिरणी के समान इधर-उधर विचरण करने लगी। उसके चीत्कार को सुनकर वन-उपवन के पशुओं के हृदय भी विदीर्ण होने लगे। वे भी इस रूदन करती हुई बाला के ऊपर दयालु हो रहे थे।
शायद आप लोग आश्चर्य कर रहें होंगे कि इस द्वीप में दो चार दिन हम लोगों ने निवास क्यों नहीं किया हमारे नाविक भी दिन-रात नाव चलाने के कारण थक गये हैं। अतः यहाँ विश्राम करना आवश्यक था। पर उस राक्षस की आकृति को देखकर मुझे अभी भी भय लग रहा है। इसी कारण जलयान को तीव्रगति से आगे बढ़ाया जा रहा है।
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उधर महेश्वर जब में उपवन की ओर बढ़ा तो दत्त के साथियों वहां एक भयंकर राक्षस मिला, उससे जो मेरी प्राणेश्वरी का भक्षण पूछा- आपकी कर गया। वह तो मेरी ओर भी पत्नी कहाँ रह झपटा था, पर मैं उससे किसी
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गई. यह क्यों प्रकार बचकर निकल आया। नहीं दिखाई उस राक्षस के आतंक के कारण ही तो मैंने यहाँ से अपने जलपोत पड़ती है? को शीघ्र रवाना कर दिया है।
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नर्मदा सुन्दरी के करुण क्रन्दन को उस निर्जन प्रदेश में कोई भी सुनने वाला नहीं था। वह रोती हुई मुर्छित हो जाती। जब मूर्छा दूर हुई तो पुनः रोने लगी। प्रतिक्षण उसका प्रलाप वृद्धिगत होता जा रहा था। कभी वह शुन्य वन-वीथिकाओं में दौड़ने लगी, कभी समूह में भटकी हुई हंरिणी के समान इधर-उधर दौड़ लगाती। इस प्रकार उसको रूदन करते हुए संध्या हो गयी। सूर्य भी अस्ताचल की ओर गमन करने का उपक्रम कर रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि नर्मदा के विलाप । को सुनने में असमर्थ होने के कारण सूर्य पश्चिम समुद्र में अस्त होने जा रहा है।
प्रेस की भभूत