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जब सूर्य का उदय हुआ तो नर्मदा की स्थिति पूर्ववत ही थी। उसने किसी जब नर्मदा ने देखा की विलाप करने से कोई लाभ नहीं। अतः प्रकार रोते कल्पते रात्रि व्यतीत की। सूर्य यह जानने के लिए पुनः उदय | वह धीरे-धीरे शान्ति प्राप्त करने की चेष्टा करने लगी,पर कभी को प्राप्त हुआ कि पति वियोग में दुःखी वह बाला अभी जीवित है या मर | उसका हृदय उस दुःख से विदीर्ण होने लगता था। एक दिन चुकी है। जिन चन्द्रमा और नक्षत्रों ने उस विहरणी बाला को कष्ट दिया।
सुन्दरी! तुम्हारा पति तुम्हें बुद्धिपूर्वक था, वे भी अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए अस्त हो रहे थे। नर्मदा सुन्दरी रह-रह कर अपने प्राणधार महेश्वर को पुकारती थी।
यहाँ छोड़कर चला गया है। अब तुम व्यर्थ ही उसके लिए रूदन
करती हो। उसकी प्राप्ति होने में अभी बहुत समय है। तुम्हें अनेक आपने किस अपराध के कारण मेरा त्याग किया है। आप अत्यन्त || परीक्षाओं से उत्तीर्ण होना पड़ेगा, तभी तुमको उसकी प्राप्ति होगी। दयालु और धर्मात्मा है, फिर इस प्रकार का दण्ड क्यों दिया? नाथ, मेरे अपराधों को क्षमा कर आप सामने आईये और मुझे धैर्य बधाइये।
इस वाणी को सुनकर वह सुन्दरी आश्चर्यचकित हो गयी और उसे वस्तुस्थिति समझने में विलम्ब नहीं हुआ।वह सोचने लगीमुनिश्राप के कारण ही मुझे यह विपत्ति प्राप्त हुई है अथवा इसमें मुनि का क्या अपराध, यह मेरे पूर्वकृत कर्मोदय का फल है। मनुष्य पूर्व जन्म में जैसे शुभाशुभ कर्म करता है। उन्हीं के अनुसार उसे अच्छे और बुरे फल प्राप्त होते हैं। क्या मैं इस विपत्ति से ऊब कर प्राणघात कर लूं, पर प्राणघात तो महापाप होता है। प्राण घात करने से दुःखों का अन्त नहीं होगा बल्कि दुःखों की परम्परा और बढ़ती जायेगी। अतएव यदि में जम्बूद्वीप में किसी प्रकार पहुँच जाऊ तो अवश्य ही आर्यिका दीक्षा धारण कर लँगी।
इस प्रकार मन में निश्चय कर वह पञ्च नमस्कार मंत्र का चिन्तन करने लगी।
जैन चित्रकथा