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उसने व्यापार हेतु यवन द्वीप चलने की तैयारी कर दी। अन्य सार्थवाहों को भी साथ चलने की आज्ञा दे दी गयी। सभी के यान तैयार होने लगे। विभिन्न प्रकार का सामान यानों में भरा जाने लगा। जिस-जिस प्रकार के सामान की बिक्री यवनद्वीप में हो सकती थी। उस-उस प्रकार का सामान एकत्र किया गया। जब सभी प्रकार की तैयारियाँ समाप्त हो चुकी और गमन करने की तिथि निकट आई तो नर्मदा ने अपने पति महेश्वर दत्त से प्रार्थना कीनाथ! पति के वियोग में पत्नी का कुशलता पूर्वक रह सकना प्रिये! तुम परदेश के कष्टों से अपरिचित हो, इसी कारण साथ चलने का बहुत कठिन है। आप यवन द्वीप को जा रहे हैं, मैं आपके बिना आग्रह कर रही हो। परदेश में नाना प्रकार के कष्ट होते हैं। वहाँ की भाषा एक क्षण भी नहीं रह सकती हूँ। अतएव आप मुझे अपने साथ न जानने से तो न मालूम कितने प्रकार की कठिनाइयाँ उठानी पड़ती है।। ले चलने की अनुमति दीजिए। मैं आपकी सब प्रकार से सेवा | मैं अकेला तो किसी प्रकार सह लूँगा, पर तुम्हारी जैसी सुन्दरी को साथ करूगी। समय-समय आपको उचित परामर्श भी दूंगी। लेकर चलना उचित नहीं है। मार्ग मैचोर-डाकू मिलते हैं जिनका धनुर्वाण
से सामना करना होता है।
प्रभो! आप के साथ चलने से मुझे सुन्दरी! तुम यहीं रहकर नाथ! मैं आपके वियोग में प्राण धारण करने में असमर्थ हूँ। आनन्द के अतिरिक्त कुछ भी सास, ससुर और परिजनों मछली जल से अलग होने पर जीवित रह सकती है पर मैं कष्ट नहीं होगा।
की सेवा कर अपने कर्त्तव्य आपके बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकती हूँ। यह आप का पालन करो।
निश्चय समझ लीजिए कि,यहाँ से आपके जाने के पश्चात् मेरे प्राण भी आपके साथ चलेंगे। शरीर का चलना तो मेरे हाथ में नहीं है, पर प्राणों का चलना तो मेरी इच्छा के अधीन है। आप जानते हैं कि नारी के लिए पति ही गति है,पति ही शरण है और पति ही सर्वस्व है। पति के अभाव में नाना प्रकार की विपत्तियों का सामना करना पड़ता है।
CASE
जैन चित्रकथा