Book Title: Pratikraman Aalochana Samayik Path
Author(s): Jain Mumukshu Mahila Mandal
Publisher: Jain Mumukshu Mahila Mandal
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प्रतिक्रमण-आवश्यक]
पर्वसु नन्दीश्वरवरमहिमा दिवसेषु चोपरागेषु। सूर्याचन्द्रमसोरपि नाध्येयं जानता वतिना ।।१०६।। अष्टम्यामध्ययनं गुरु-शिष्यद्वय वियोगमावहति । कलहं तु पौर्णमास्यां करोति विघ्न चतुर्दश्याम् ।।१०७।। कृष्णचतुर्दश्यां यद्यधीयते साधवो ह्यमावस्यायाम् । विद्योपवासविधयो विनाशवृत्तिं प्रयान्त्यशेष सर्वे ।। १०८॥ . मध्यान्हे जिनरूपं नाशयति करोति संध्ययोर्व्याधिम् । तुष्यन्तोऽप्यप्रियतां मध्यमरात्रौ समुपयान्ति ।।१०६।। अतितीव्रदुःखितानां रुदतां संदर्शने समीपे च । स्तनयित्मविद्युदभ्रेष्वतिवृष्ट्या उल्कनिर्धाते ॥११०॥ प्रतिपद्येकः पादो ज्येष्ठामूलस्य पौर्णमास्यां तुं। सा वाचनाविमोक्षे छाया पूर्वाण्हवेलायाम् ।।१११।। सैवापराण्हकाले वेला स्याद्वाचनाविद्यौ विहिता। सप्तपदी पूर्वाण्हापराण्हयोर्ग्रहण-मोक्षेषु॥११२॥ ज्येष्ठामूलात्परतोऽप्यापौषाद्द्वयंगुला हि वृद्धिः स्यात् । मासे मासे विहिता क्रमेण सा वाचनाछाया ।।११३॥ एवं क्रमप्रवृद्धया पादद्वयमत्र हीयते पश्चात् । पौषादाज्येष्ठान्ताद् द्वयंगुलमेवेति विज्ञेयम् ॥११४।। दव्वादिवदिक्कमणं करेदि सुत्तत्थसिक्खलोहेण । असमाहिमसज्झायं कलहं वाहिं वियोगं च१ ॥११॥ विणएण सुदमधीदं किह वि पमादेण होइ विस्सरिदं । तमुवट्ठादि परभवे केवलणाणं च आवहदिर ।।११६॥

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