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प्रतिक्रमण-आवश्यक ] सिद्धाणं, सबसिद्धाणं, णिच्चकालं अंचेमि, पूजेमि, वन्दामि, णमंसामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो सुगइगमणं, समाहि मरणं, जिणगुणसम्पत्ति होउ मज्झं ।।
अर्थ : हे भगवन् ! मैने सिद्ध भक्ति सम्बन्धी कायोत्सर्ग किया, उसकी आलोचना करने की इच्छा करता हूं। जो सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र से युक्त है, आठ प्रकार के कर्मों से मुक्त है, आठ गुणों से सम्पन्न है, ऊर्ध्वलोक के मस्तक पर प्रतिष्ठित है, तप सिद्ध है, नयसिद्ध है, संयमसिद्ध है, चारित्र सिद्ध है, सम्यग्ज्ञान सम्यग्दर्शन और सम्यकचारित्र से सिद्ध है, अतीत, अनागत और वर्तमान इन तीनों कालों में सिद्ध है ऐसे सब सिद्धों की नित्यकाल अर्चा करता हूं पूजा करता हूं, वंदना करता हूं, नमस्कार करता हूं। मेरे दुःखो का क्षय हो, कर्मों का क्षय हों, बोधि रत्नत्रय का लाभ हो, सुगति में गमन हो, समाधि मरण हो और जिनेन्द्र के गुणों की सम्यक् प्राप्ति हो।।
कृति अनुयोग द्वारा (वाचना शुद्धि प्ररूपणा)
धवला पुस्तक-६ यमपटहरवश्रवणे रुधिरस्वाऽगतोऽतिचारे च। दातृष्वशुद्धकायेषु भुक्तवति चापि नाध्येयम् ॥६२॥ तिलपलल-पृथुक-लाजा-पूपादिस्निग्धसुरभिगधेषु। भक्तेषु भोजनेषु च दावाग्निघूमे च नाध्ययम् ॥६३॥ योजनमण्डलमात्रे सन्यासविधौ महोपवासे च। आवश्यकक्रियायां केशेषु च लुच्यमानेषु ।।६४॥