Book Title: Pratikraman Aalochana Samayik Path
Author(s): Jain Mumukshu Mahila Mandal
Publisher: Jain Mumukshu Mahila Mandal

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Page 12
________________ [ प्रतिक्रमण-आवश्यक ६] की अनुमोदना की हो, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो ॥३॥ गद्य - चउरिंदिया जीवा असंखेज्जासंखेज्जा, दंसमसय, मक्खि, पयंगकीड- भमर-महुंयर-‍ र- गोमिच्छि-याइया, एदेसिं उद्दावणं परिदावणं, विराहणं, उवघादो कदो वा, कारिदो वा कीरंतो वा समणुमणिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं || ४ || अर्थ ः– स्पर्शन, रसना, घ्राण चक्षु ये चार इंद्रियां होती है ऐसे चार इंद्रिय जीव असंख्याता - संख्यात संख्या प्रमाण है उनमें से दश (डांस) मशक (मच्छर ) मक्खि (मक्खी) पयंग (पतंगा) कीट (गोमय कीट, रक्तकीट, अर्ककीटादि) भ्रमर ( भौरा ) महुयर (मधुमक्खी) गोमक्षिका इत्यादि असंख्याता - संख्यात संख्या प्रमाण जो चौ इन्द्री जीव है इनका उत्तापन, परितापन विराधना और उपघात मैनें किया हो, कराया हो और करने वाले की अनुमोदना की हो, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या होवे ॥४॥ लघु सिद्धभक्ति तवसिद्धे णयसिद्धे, संजमसिद्धे चरित सिद्धे य । णाणम्मि दंसणम्मिय, सिद्धे सिरसा णमंसामि || २ || HEILPR अर्थ : : - तप से सिद्ध, नय से सिद्ध, संयम से सिद्ध, चरित्र से सिद्ध, ज्ञान से सिद्ध और दर्शन में सिद्ध हुए ऐसे सब सिद्धों को मैं सिर झुकाकर नमस्कार करता हूं ॥ २ ॥ गद्य - (अंचलिका) - इच्छामि भंते! सिद्धभक्ति काउस्सग्गो कओ, तस्सालोचेउं सम्मणाण - सम्मदंसण - सम्मचारित्त जुत्ताणं, अट्ठविह-कम्म-विप्प मुक्काणं, अट्ठगुणसंपण्णाणं, उडलोयमत्थयम्मि पयट्ठियाणं, तवसिद्धाणं णयसिद्धाणं, संजमसिद्धाणं, चरित्तसिद्धाणं, अतीताणागदवट्टमाणकालत्तय

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