Book Title: Pramana Naya Tattvaloka Author(s): Himanshuvijay, Purnanadvijay Publisher: Amblipol Jain Upashray View full book textPage 8
________________ उपोद्घात गुजरातमां दर्शनविद्या प्राचीन काळथी प्रचलित हती. तेमां जैन आचार्योए नोधपात्र फाळो आप्यो छे. आचार्य मल्लवादीनुं नयचक्र विक्रमनी पांचमी शतीमां समग्र भारतीय दर्शनधाराओनो समावेश करीने रचायु छे. आचार्य हरिभद्रे पण षड्दर्शनसमुच्चय, शाखवार्तासमुच्चय अने धर्मसंग्रहणी जेवा ग्रन्थो रचीने दार्शनिक तत्वविचारणा करी छे. परंतु प्रमाणविद्या विषे भाचार्य वादी देवसूरि (वि. ११४३१२२६)ना 'प्रमाण-नयतत्वालोक'नुं अनोखं स्थान छे; कारण, तेमणे तत्त्वविचारणाना साधन प्रमाणने केन्द्रमा राखीने ते ग्रन्थनी रचना करी छे. भारतीय दर्शननोना विचार-विकासमां प्रमेयविचारणा तो घणा काळथी थती हती पण न्यायसूत्र पछी प्रमाणने कोईए महत्त्व आप्यु होय तो ते बौद्धोर. एटले त्यार पछी प्रमाणविद्या विषे विस्तृत साहित्य रचायुं छे, प्रमाणकेन्द्रित जैनदार्शनिक साहित्यनी खोटनी पूर्ति करवानो एक प्रयत्न 'न्यायावतार'मां सिद्धसेने को अने तेना विवरणनो प्रयत्न जिनेश्वरना 'प्रमालदम' अने शान्त्याचार्य ना 'वार्तिक मां थयो पग ते पर्याप्त हतो नहि. आथी समग्र भावे चर्चाने समेटी लेतो वादी देवसूरिनो 'प्रमाणनयतत्त्वालोक' तेनी टीका 'स्याद्वादरत्नाकर' साये गुजरातना दार्शनिक साहित्यमां अनोखं स्थान धरावे छे. __ वादि देवसूरि समक्ष आचार्य माणिक्यनंदिनुं 'परीक्षामुख' हतुं ज अने उपरांत दार्शनिक साहित्य तेमणे जे मळी शक्युं ते भेगुं कयु. अने एम कहे, जोईए के परीक्षामुखनुं नवं संस्करण, तेमांPage Navigation
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