Book Title: Pramana Naya Tattvaloka Author(s): Himanshuvijay, Purnanadvijay Publisher: Amblipol Jain Upashray View full book textPage 7
________________ संपादकीय परमपूज्य गुरुदेवोनो फरीथी उपकार मानीने संपादकीय निवेदन पूरं करुं ते पहेलां-जैन समाजनी धार्मिक पाठशाळाना संचालकोने, अने न्यायर्नु पठन करवा मांगता पू. साधु-साध्वीजी महाराजामोने साग्रह निवेदन करीश के तर्कसंग्रहना बदले 'प्रमाणनयतत्त्वालोक'ना पटनमां वधारे आग्रह राखशो, कारण के शरूआतमा प्रमाणनयतत्त्वालोकने भणतां आपणी श्रद्धा स्थिर थशे अने जैनशासनना मूळभूत विषयो जेवा के सम्यग्ज्ञान, केवळज्ञान, केवळी भगवान्, शब्दनी पुद्गलता, आप्तवचन, श्री जैनागम, आगमसिद्धि, सर्वज्ञसिद्धि, सामान्य-विशेषात्मक प्रमेय, सप्तभंगी अने नयोनी विशद व्याख्याथी मापणुं हृदय जैनशासननी वफादारी स्वीकारवा तैयार थशे, ते उपरांत तर्कसंग्रहनो पूरेपूरो विषय 'प्रमाणनय.... ' पुस्तकना तृतीय परिच्छेदमां समायेलो छे. माटे न्यायना अभ्यास माटे प्रमाणनयतत्त्वालोक सिवाय बंजो कोई ग्रन्थ नथी ज एटलं निवेदन अहीं पर्याप्त थशे. आंबलीपोळ, झवेरीवाड-अमदावाद पूर्णानन्दविजय ___ मागसर सुदि १० धर्म सं. ४८, वि. २०२६Page Navigation
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