Book Title: Pramana Naya Tattvaloka
Author(s): Himanshuvijay, Purnanadvijay
Publisher: Amblipol Jain Upashray

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Page 5
________________ संपादकीय (५) चार्यर्ज ने अनुरोध कर्यो अने ए सरस्वतीपुत्रे आ बालबोधिनी टीका जे प्रकारे पोते भणावता हता ते पद्धतिए ज रची छे. आ प्रकारे आ नानी टीकानो जन्म थयो छे. संक्षेपमां पण न्यायसूत्रोना मर्मने समजावनारी आ टीकानुं एज साफल्य छे के एनी बंजी आवृत्ति प्रसिद्धिमां आवी रही छे. आठ परिच्छेदोमां मा ग्रन्थ पूरो थाय छे. प्रथम परिच्छेदमां ' प्रमाण शुं होई शके ? ' एनी विशद चर्चा करीने सम्यगज्ञाननी प्रामाणिकता सिद्ध करी छे. बीजा परिच्छेदमां सम्यगज्ञाननां अने तेना अवान्तर भेदोनां लक्षणो श्रद्धा स्थिर करावे एवां छे. त्रीजा परिच्छेदमां परोक्ष प्रमाणनां लक्षणो अने तेना भेदो, जेवा के हेतु, व्याप्ति, तर्क, दृष्टान्त, उपनय, निगमन-ए पांच अवयवोनुं विस्तारथी पण स्पष्ट कथन छे. चतुर्थ परिच्छेदमां आगमप्रमाणनी चर्चा छे, आगमकार कोण ? एनी स्पष्टता करीने तीर्थकरवचनने ज आगमप्रमाण मान्य छे. साथोसाथ शब्द ए पुद्गल छे अने पुद्गल द्रव्य ज होय छे, गुण नहीं, आ प्रमाणे शब्दोनुं पौद्गलिकत्व सिद्ध करीने सप्तभंगीनुं निरूपण स्पष्टरूपे जोवा मळे छे. पांचमा परिच्छेदमां प्रमाणना विषयभूत प्रमेयनी चर्चा छे. १

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