Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2 Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan View full book textPage 5
________________ [सम्पादकीय आचार्य हेमचन्द्र प्रणीत प्राकृत व्याकरण जिसकी सरल हिन्दी व्याख्या उपाध्याय पण्डितरत्न श्री प्यारचन्दजी महाराज ने अत्यन्त परिश्रम पूर्वक की थी और उस प्राकृत व्याकरण का दो भागों में प्रकाशन वर्ष 1967 में श्री जैन दिवाकर दिव्य ज्योति कार्यालय, ब्यावर द्वारा किया गया था। प्राकृत भाषा एवं व्याकरण जिज्ञासु पाठकों के लिए प्राकृत व्याकरण की यह कृति अत्यन्त महत्वपूर्ण थी किन्तु 40 वर्ष की दीर्घ अवधि में यह पुस्तक वर्तमान में प्रायः अप्राप्य (Out of Print) हो गई है। आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर ने इस पुस्तक की उपयोगिता को दृष्टिगत रखते हुए पूर्व प्रकाशक संस्था से अनुमति प्राप्त कर 'हेम प्राकृत व्याकरण' के दोनों भागों को पुनः सम्पादित कर नवीन रूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया और यह जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई। मुझे प्रसन्नता है कि प्राकृत भाषा एवं व्याकरण के जिज्ञासुजनों के लिए अनुपलब्ध यह ग्रन्थ अब आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर द्वारा नवीन रूप से सम्पादित होकर प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत दोनों संस्करणों के सम्पादन में मुझे संस्थान के पूर्व प्रभारी श्री मानमल कुदाल का विशेष सहयोग मिला, इस हेतु मैं हदय से उनका आभार प्रकट करता हूं। साथ ही डॉ. उदय चन्द जैन एवं डॉ. शक्ति कुमार शर्मा ने प्रूफ संशोधन में जो सहयोग दिया, उस हेतु उनके प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ। । प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन एवं प्रूफ संशोधन में अत्यन्त सावधानी रखी गई है फिर भी दृष्टिदोष के कारण अथवा मानवीय स्वभावगत दुबर्लता के कारण यदि कहीं कोई अशुद्धि प्रतीत हो तो कृपालु पाठकगण उसे सुधार कर पढ़ने की कृपा करें। शब्दों की सिद्धि और साधनिका में प्रत्येक स्थान पर अनेकानेक सूत्रों की संख्या और क्रम दिये गये हैं। अतः हजारों शब्दों की सिद्धि में हजारों बार सूत्र-क्रम-संख्या का निर्देशन करना पड़ा है ऐसी स्थिति में सूत्र-क्रम-संख्या में कहीं-कहीं पर असम्बद्धता प्रतीत हुई हो, 'हैं के स्थान 'है', 'है' के स्थान 'हैं', 'रेफ्' के स्थान 'पूर्ण अक्षर', 'पूर्ण अक्षर' के स्थान पर 'रेफ्','ब' के स्थान पर 'व','व' के स्थान पर 'ब', 'अ' के स्थान पर '' अथवा 'ज', '' के स्थान 'अ' अथवा 'ज' तथा 'हलन्त अक्षरों' के स्थान पर पूर्ण अक्षर' अथवा 'पूर्ण अक्षर' के स्थान पर हलन्त अक्षर' हुए हैं, इस बात की पूर्ण सम्भावना है। अतः विज्ञ-पाठक से उसे सुधार कर पढ़ने का परम अनुग्रह है। प्रस्तुत संस्करण के अक्षर टंकण का कार्य अत्यन्त परिश्रम पूर्ण था किन्तु श्री ताराचंद प्रजापत ने पूरे मनोयोग के साथ इस कार्य को पूर्णता प्रदान की, इस हेतु मैं उन्हें भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। डॉ. सुरेश सिसोदिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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