Book Title: Prakrit Vidya 2003 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 4
________________ परामर्शदाता - श्री पारसदास जैन सम्पादक-मण्डल प्रो. (डॉ.) प्रेम सुमन जैन प्रो. (डॉ.) शशिप्रभा जैन डॉ. उदयचन्द्र जैन - डॉ. वीरसागर जैन प्रबन्ध सम्पादक डॉ. सत्यप्रकाश जैन श्री कुन्दकुन्द भारती (प्राकृत भवन) 18-बी, स्पेशल इन्स्टीट्यूशनल एरिया, नई दिल्ली-110067 फोन (011) 6564510, 6513138 Kundkund Bharti (Prakrit Bhawan) 18-B, Spl. Institutional Area New Delhi-110067 Phone (91-11) 6564510,6513138 आचार्य कुन्दकुन्द का काल-निर्णय ___ आचार्य कुन्दकुन्द ईसापूर्व प्रथम शताब्दी में हुए थे, ऐसा समस्त निर्विवाद विद्वानों ने एकमत से स्वीकार किया है। 'अभिधान राजेन्द्रकोश' के कर्ता सुप्रसिद्ध श्वेताम्बर आचार्य राजेन्द्रसूरि जी लिखते हैं____ कुन्दकुन्द (पु.) स्वनामख्यातो दिगम्बराचार्य:, भद्रबाहुर्गुप्तिगुप्तोमाघनन्दिर्जिनचन्द्रः कुन्दकुन्दाचार्य इति तत्पट्टावल्यां शिष्यपरम्परा। अयमाचार्यो विक्रम सं. 49 वर्षे वर्तमान आसीत्। अस्यैव वक्रग्रीव: एलाचार्यः गृद्धपिच्छ: मदन नन्दि दिव्यपराणि नामानि । – (अभिधानराजेन्द्रकोश:, भाग 3, पृष्ठ 577) ___विभिन्न पट्टावलियों, शिलालेखों प्रशस्तियों एवं ग्रन्थों के आधार पर पं. बलभद्र जी ने आचार्य कुन्दकुन्द का कालगत परिचय इसप्रकार दिया है. उनका जन्म आन्ध्र प्रान्त में कुन्दकुन्दपुरम् में शार्वरी नाम संवत्सर माघ शुक्ला 5, ईसापूर्व 108 में हुआ था। उन्होंने 11 वर्ष की अल्पायु में श्री श्रमण मुनि-दीक्षा ली तथा 33 वर्ष तक मुनिपद पर रहकर ज्ञान और चारित्र की सतत् साधना की। 44 वर्ष की आयु में (ई.पू. 64) चतुर्विध (श्रमण, श्रमणा और श्रावक, श्राविका) संघ ने उन्हें आचार्य-पद पर प्रतिष्ठित किया। वे 51 वर्ष, 10 मास, 15 दिन इस पद पर विराजमान रहे। उन्होंने 95 वर्ष, 10 मास, 15 दिन की दीर्घायु पायी और ई.पू. 12 में समाधि-मरण द्वारा स्वर्गारोहण किया। ___आचार्य कुन्दकुन्द के दिव्य-अवदान के कारण उन्हें प्रत्येक मांगलिक कार्य में मंगल-चतुष्टय के अंतर्गत सादर-स्मरण किया जाता है मंगलं भगवदो वीरो, मंगलं गोदमो गणी। _ मंगलं कोण्डकुंदाइ, जेण्ह धम्मोत्थु मंगलं ।। 792 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)

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