Book Title: Prakrit Hindi Vyakaran Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 62
________________ 1. स्वार्थिक प्रत्यय प्राकृत भाषा में 'अ', 'इल्ल' और 'उल्ल' स्वार्थिक प्रत्यय होते हैं। उपर्युक्त स्वार्थिक प्रत्यय जोड़ने पर मूल अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता है। संज्ञा शब्दों में अथवा विशेषण में इन स्वार्थिक प्रत्ययों को जोड़ने के पश्चात विभक्ति बोधक प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं। जैसे(चन्द+अ) = चन्दअ (पु.) (चन्द्रमा) चन्दओ (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (चन्द+इल्ल) = चन्दिल्ल (पु.) (चन्द्रमा) चन्दिल्लो (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (चन्द+उल्ल) = चन्दुल्ल (पु.) (चन्द्रमा) चन्दुल्लो (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (हिअय+अ) = हिअयअ (नपुं.) (हृदय) हिअयअं (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (हिअय+इल्ल) = हिअयिल्ल (नपुं.) (हृदय) हिअयिल्लं (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (हिअय+उल्ल) = हिअयुल्ल (नपुं.) (हृदय) हिअयुल्लं (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (गयण+अ) = गयणअ (नपुं.) (गगन) गयणअं (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (गयण+इल्ल) = गयणिल्ल (नपुं.) (गगन) गयणिल्लं (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (गयण+उल्ल) = गयणुल्ल (नपुं.) (गगन) गयणुल्लं (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (बहुअ+अ) = बहुअअ (वि.) (बहुत) बहुअओ (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (बहुअ+इल्ल) = बहुइल्ल (वि.) (बहुत) बहुइल्लो (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (iv) प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2) (51). Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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