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सम्मति प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-1)
आचार्य हेमचन्द्र का प्राकृत व्याकरण लोक-प्रसिद्ध, व्याकरण के क्षेत्र में अग्रणी एवं प्राकृत के प्रत्येक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाला है। प्रो. कमलचन्द सोगाणी एक कुशल दार्शनिक हैं। वे खुले-विचारक एवं चिन्तनशील व्यक्ति हैं। उन्होंने प्राकृत व्याकरण के क्षेत्र को व्यापक बनाने के लिए उदयपुर के पश्चात जयपुर में सन् 1988 से प्राकृत साहित्य जगत की प्रगति के लिए जो विद्वान तैयार किए हैं, वे नई ऊँचाइयों को प्राप्त हैं। विदुषी लेखिकाएँ भी आगे आकर प्राकृत को जनोपयोगी बना रही हैं। उन्हीं विदुषी लेखिकाओं में श्रीमती शकुन्तला जैन शौरसेनी, अर्धमागधी, महाराष्ट्री आदि प्राकृत के नियमों को अति सरल बनाने में समर्थ हुई हैं। उन्होंने प्रारम्भिक वर्णमाला से लेकर प्राकृत के जो रूप दिए हैं वे सामान्य पाठक के लिए उपयोगी
उन्होंने संज्ञा शब्दों के रूपों में महाराष्ट्री, शौरसेनी, मागधी, पैशाची एवं अर्धमागधी के प्रयोग दिए हैं। इसमें सभी लिंगों, सभी कारकों आदि को एक ही स्थल पर रखकर पाठकों के लिए रूपों को बोधगम्य बना दिया है।
निर्देशन एवं संपादन- डॉ. कमलचन्द सोगाणी लेखिका- श्रीमती शकुन्तला जैन नोटः उपर्युक्त दो सम्मतियाँ पुस्तक प्रकाशित होने के बाद प्राप्त हुई हैं। अतः इन्हें पुस्तक के अंत में दिया जा रहा हैं। दूसरे संस्करण में इन्हें उचित स्थान पर दे दिया जायेगा।
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