Book Title: Prakrit Hindi Vyakaran Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 142
________________ सम्मति प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-1) आपके द्वारा प्रेषित श्रीमती शकुन्तला जैन द्वारा प्रस्तुत पुस्तक 'प्राकृत हिन्दी-व्याकरण (भाग-1)' पुस्तक मिली। प्राकृत भाषाओं के प्रायः सभी नियम हिन्दी में उपलब्ध कराकर लेखिका और सम्पादक महोदय ने प्रेरणास्पद कार्य किया है। प्रारम्भ में जो 1 से 48 एवं 1 से 15 नियम पुस्तक में दिये हैं वे सामान्य प्राकृत के हैं, जिसे प्रायः सभी वैयाकरण महाराष्ट्री प्राकृत कहते हैं। इन नियमों के अभ्यास से प्राकृत काव्य, कथा एवं चरित ग्रन्थों को समझा जा सकता है। पुस्तक में इन नियमों के आगे जो अन्य प्राकृतों के विशिष्ट नियम दिये गये हैं, वहाँ यह समझना चाहिये कि उनमें प्रारम्भ के 1 से 48 एवं 1 से 15 नियम भी प्रायः प्रयोग में आते हैं। अतः यह पुस्तक किसी भी प्राकृत के स्वाध्याय के लिए उपयोगी प्रतीत होती है। पुस्तक में दिये गये परिशिष्टों से पुस्तक की प्रामाणिकता भी स्पष्ट होती है। इससे लेखिका का सारस्वत श्रम सार्थक हुआ है। आशा है, अकादमी के ऐसे प्रकाशनों से प्राकृत के पठन-पाठन के प्रति समाज में रुचि बढ़ेगी। पुस्तक के आगामी भाग शीघ्र प्रकाश में आयेंगे, यह उम्मीद की जा सकती है। पुस्तक का प्रकाशन नयनाभिराम है। बधाई। डॉ. प्रेमसुमन जैन - पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष : जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय उदयपुर निर्देशन एवं संपादन- डॉ. कमलचन्द सोगाणी लेखिका- श्रीमती शकुन्तला जैन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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