Book Title: Prakrit Bharti Author(s): Prem Suman Jain Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan View full book textPage 6
________________ प्राथमिक भारतीय संस्कृति एवं भाषाओं के विकासक्रम को भलीभाँति समझने लिए प्राचीन भाषाओं एवं उनके साहित्य का पठन-पाठन विश्वविद्यालयों एवं सामाजिक शिक्षण संस्थाओं में निरन्तर बढ़ रहा है । प्राकृत भाषा एवं साहित्य के विशाल भण्डार की जानकारी एवं उसके विधिवत् ज्ञान के लिए स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर प्राकृत के विभिन्न पाठ्यक्रम भी संचालित हो रहे हैं । किन्तु उन पाठ्यक्रमों के अनुसार प्राकृत की स्तरीय पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन अभी नहीं के बराबर हुआ है । जो पाठ्यपुस्तकें प्रकाशित हुई भी हैं, वे अनुपलब्ध हो गई हैं या एक स्थान पर प्राप्त नहीं हैं । अतः प्राकृत के शिक्षण को गति देने के लिए प्राकृत के प्राध्यापकों के समन्वित प्रयत्न से यह प्राकृत भारती तैयार की गयी है । इस "प्राकृत भारती" में स्नातक स्तर के विद्यार्थियों के लिए प्राकृत साहित्य के प्रायः सभी प्रतिनिधि ग्रन्थों के पद्य एवं गद्य के पाठ संकलित किये गये हैं । इन पाठों का मूलानुगामी हिन्दी अनुवाद भी दिया गया है एवं प्रारम्भ में प्राकृत भाषा व साहित्य की संक्षिप्त रूपरेखा भी प्रस्तुत की गयी है । प्राकृत भारती के सभी पाठ सांस्कृतिक मूल्यों एवं काव्यात्मक सौन्दर्य को प्रगट करते हैं । इनमें सम्प्रदाय का संकुचित दायरा नहीं है । अतः यह पुस्तक विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त विभिन्न धार्मिक परीक्षा बोर्डों में भी प्राकृत-शिक्षण के लिए उपयोगी होगी, ऐसी आशा है । इस पुस्तक के पठन-पाठन से पाठकों एवं विद्यार्थियों में प्राकृत भाषा व साहित्य को गहरायी से जानने-समझने की ललक जगे तो प्रकाशक एवं सम्पादकमण्डल का श्रम सार्थक होगा । पुस्तक की तैयारी में प्राकृत के जिन मूर्धन्य विद्वानों की सम्पादित - अनूदित कृतियों से सामग्री ली गयी है, उनके हम आभारी हैं । सम्पादकमण्डल के विद्वान् प्राध्यापकों प्रोफेसर डॉ० राजाराम जैन डॉ० उदयचन्द जैन एवं डॉ० हुकमचन्द जैन के सहयोग के लिए भी हम उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं । पुस्तक के प्रकाशक आगम अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर ने इस पुस्तक के प्रकाशन द्वारा प्राकृत के प्रचार-प्रसार में नया कदम बढ़ाया है । यह संस्थान आगमों के प्रमुख ग्रन्थों की शोध कृतियों एवं अनुवाद कार्य को भी प्रकाशित कर रहा है । अतः प्राकृत के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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