Book Title: Pragnapana Sutra Part 02 Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 7
________________ ************************************************* ***** ***************************** आगम अनुवाद का विशेष अनुभव नहीं होने से भूलों का रहना स्वाभाविक है। अतएव तत्त्वज्ञ मनीषियों से निवेदन है कि इस प्रकाशन में यदि कोई भी त्रुटि दृष्टिगोचर हो तो हमें सूचित करने की महती कृपा करावें। प्रस्तुत सूत्र पर विवेचन एवं व्याख्या बहुत विस्तृत होने से इसका कलेवर इतना बढ़ गया कि सामग्री लगभग १६०० पृष्ठ तक पहुँच गयी। पाठक बंधु इस विशद सूत्र का सुगमता से अध्ययन कर सके इसके लिए इस सूत्रराज को चार भागों में प्रकाशित किया जा रहा है। प्रथम भाग में १ से ३ पद का, दूसरे भाग में ४ से १२ पद का, तीसरे भाग में १३ से २१ पद का और चौथे भाग में २२ से ३६ पद का समावेश है। ___ संघ की आगम बत्तीसी प्रकाशन में आदरणीय श्री जशवंतलाल भाई शाह, मुम्बई निवासी का मुख्य सहयोग रहा है। आप एवं आपकी धर्म सहायिका श्रीमती मंगलाबेन शाह की सम्यग्ज्ञान के प्रचार-प्रसार में गहन रुचि है। आपकी भावना है कि संघ द्वारा प्रकाशित सभी आगम अर्द्ध मूल्य में पाठकों को उपलब्ध हो तदनुसार आप इस योजना के अन्तर्गत सहयोग प्रदान करते रहे हैं। अतः संघ आपका आभारी है। . आदरणीय शाह साहब तत्त्वज्ञ एवं आगमों के अच्छे ज्ञाता हैं। आप का अधिकांश समय धर्म साधना आराधना में बीतता है। प्रसन्नता एवं गर्व तो इस बात का है कि आप स्वयं तो आगमों का पठन-पाठन करते ही हैं, पर आपके सम्पर्क में आने वाले चतुर्विध संघ के सदस्यों को भी आगम की वाचनादि देकर जिनशासन की खूब प्रभावना करते हैं। आज के इस हीयमान युग में आप जैसे तत्त्वज्ञ श्रावक रत्न का मिलना जिनशासन के लिए गौरव की बात है। आपके पुत्र रत्न मयंकभाई शाह एवं श्रेयांसभाई शाह भी आपके पद चिन्हों पर चलने वाले हैं। आप सभी को आगमों एवं थोकड़ों का गहन अभ्यास है। आपके धार्मिक जीवन को देख कर प्रमोद होता है। आप चिरायु हों एवं शासन की प्रभावना करते रहें, इसी शुभ भावना के साथ! प्रज्ञापना सूत्र की प्रथम आवृत्ति का जून २००२ एवं द्वितीय आवृत्ति सितम्बर २००६ में प्रकाशन किया गया जो अल्प समय में ही अप्राप्य हो गयी। अब इसकी तृतीय आवृत्ति का प्रकाशन किया जा रहा है। आए दिन कागज एवं मुद्रण सामग्री के मूल्यों में निरंतर वृद्धि हो रही है। इस आवृत्ति में जो कागज काम में लिया गया वह उत्तम किस्म का मेपलिथो है। बाईडिंग पक्की तथा सेक्शन है। बावजूद इसके आदरणीय शाह परिवार के आर्थिक सहयोग के कारण इसके प्रत्येक भाग का मूल्य मात्र ४०) ही रखा गया है, जो अन्यत्र से प्रकाशित आगमों से बहुत अल्प है। सुज्ञ पाठक बंधु संघ के इस नूतन आवृत्ति का अधिक से अधिक लाभ उठावें। इसी शुभ भावना के साथ! ब्यावर (राज.) संघ सेवक दिनांक: २५-५-२००८ नेमीचन्द बांठिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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