Book Title: Pradyumna Charit Author(s): Sadharu Kavi, Chainsukhdas Nyayatirth Publisher: Kesharlal Bakshi Jaipur View full book textPage 2
________________ प्रकाशकीय हिन्दी भाषा की प्राचीन रचना "प्रानचरित' को पाठकों के हार्यों में देते हुये मुझे प्रसन्नता हो रही है । इस पथ की हस्तलिखित प्रांत सर्व प्रथम हमें ४-५ घर्ष पूर्व जयपुर के बधीचन्द जी के मन्दिर के शास्त्रभण्डार की सूची बनाते समय प्राप्त हुई थी। इसके पश्चात् शास्त्रभण्डार कामा (भरतपुर) में भी इस ग्रंथ की एक प्रति मिल गयी। क्षेत्र की प्र० का० कमेटी ने मथ को उपयोगिता को देखते हुये इसके प्रकाशन का निश्चय कर लिया । प्रद्युम्न चरित वि० जैन प्र० क्षेत्र श्रीमहावीरजी की ओर से संचालित अन साहित्य शोष-संस्थान का प्राठवां प्रकाशन है । इस पुस्तक के पूर्व क्षेत्र की पोर से राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रंथ सूची के ३ भाग, प्रशस्ति संग्रह, सर्वार्थ सिसिसार प्रावि खोज पूर्ण पुस्तकों का प्रकाधान किया जा चुका है। इन पुस्तकों के प्रकाशन से भारतीय साहित्य एव विशेषसः जैन साहित्य की कितनी सेवा हो सकी है इसका तो विद्वान एवं रिसर्च स्कालर्स हो अनुमान लगा सकते हैं लेकिन अपनश एवं हिन्दी साहित्य के इतिहास से सम्बन्धित पुस्तफें जिनका प्रभी ५-७ वर्षों में ही प्रकाशन हुमा है उनमें जैन विद्वानों द्वारा लिखी हुई पुस्तकों का उल्लेख देखकर तथा हमारे यहां साहित्य शोध-संस्थान के कार्यालय में प्राने वाले खोज प्रेमी विद्वानों की संख्या को देखते हुये हम यह कह सकते हैं कि क्षेत्र को अोर से जो ग्रंथ सचिर्या, प्रशस्ति संग्रह एवं अनुपलब्ध साहित्य से सम्झन्धित लेख प्रादि प्रकाशित हुये हैं उनसे साहित्यिक लगत् को पर्याप्त लाभ पहुंचा है। यद्यपि हमारा प्रमुख ध्यान राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की पंथ सचियां तैयार करवाकर उन्हें प्रकाशित कराने की ओर है लेकिन हम चाहते है कि ग्रंथ सूची प्रकाशन के साथ साथ भण्डारों में उपलब्ध होने वाली अज्ञात एवं महत्वपूर्ण सामग्री का भी प्रकाशन होता रहे । अब तक साहित्य शोध संस्थान की प्रोर से राजस्थान के ७० से भी अधिक ग्रंथ भण्डारों की सूचियां तैयार की जा चुकी हैं तया उनमें उपलब्ध अज्ञात एवं महत्वपूर्ण रचनाओं का या तो परिचय लिया जा चुका है अथवा उनकी पूरी प्रतिलिपियां उतार कर संग्रह कर लिया गया है। ये प्राकृत, अपभ्रश, सांस्कृत एवं हिन्दी भाषा की रचनायें हैं। इन भण्डारों में हमें . अपभ्रंश एवं हिन्दी को सबसे अधिक सामग्री मिलती है। अपभ्रश का विशालPage Navigation
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