Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ तिब्बत के लामा १३ थे। विदेशो लेखक पीली और लाल टोपीवाले वर्गों के धार्मिक सिद्धान्तों में परस्पर बड़ा भेद बताते हैं, लेकिन एन-चे के विहार में एक गेलुग्स-पा को लाल टोपीवाले लोगों के साथ मिलकर सभापति को हैसियत से सभाकार्य चलाते देखकर शायद उन्हें अपनी भूल ज्ञात हो जाती। ___ अक्सर भेट-मुलाकात करने के लिए मैं कुशोग की गुम्बा में जाती थी। प्रायः हममें धामिक वार्तालाप ही छिड़ जाता । लामा लोगों के धर्म के विषय में इस तरह से खोद-खोदकर प्रश्न करने से उन्हें मेरे ऊपर सन्देह हुआ। एक रोज़ अकस्मात् बातें करत-करते उन्होंने मेज की दराज खोलकर काराज़ का एक बड़ा पुलिन्दा बाहर निकाला और बौद्धधर्म से सम्बन्ध रखनेवाले सवालों को उस लम्बी सूची का उत्तर वहीं उसी दम मुझसे देने को कहा। सवालों से साफ पता चलता था कि वे मुझे घबरा देने के लिए ही हूँढ-ढूंढ़कर चुने गये थे। उनका कोई खास मतलब भी नहीं निकलता था। जो हो, मैंने बारी-बारी से इन सब सवालों का जवाब दे दिया और मैं परीक्षा में पूरी उतरी। इसके बाद फिर कभी उसे मेरे ऊपर सन्देह करने का साहस नहीं हुआ और वह मुझसे बहुत सन्तुष्ट रहने लगा। ___ बर्मियग कुशोग नामक एक दूसरे विद्वान् को महाराजा सिद्क्योंग ने अपने महल ही में श्राश्रय दिया था। धार्मिक वादविवाद में महाराजा को बड़ा आनन्द आता था। ____ महाराजा सदैव अपनी भड़कीली पोशाक पहनकर बीचोबीच में एक सोफे पर बैठते। उनके सामने एक मेज़ रख दी जाती। इस मेज़ के एक और एक लम्बो कुरसी पर मैं बैठती थी। हम दोनों के सामने बढ़िया चीनी मिट्टी का एक एक प्याला रख दिया जाता, जिसक साथ में चाँदी की एक तश्तरी और मूंगे और फोराजों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, 18wrivatumaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 182