Book Title: Pind Vishuddhi
Author(s): Kulchandrasuri, Punyaratnasuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 470
________________ पिण्डविशुद्धिप्रकरणमूलम् देविन्दविन्दवन्दिय-पयारविन्देऽभिवन्दियजिणिन्दे । वोच्छामि सुविहियहियं, पिण्डविसोहि समासेण ।।१।। जीवा सुहेसिणो, तं सिवम्मि तं संजमेण सो देहे। सो पिण्डेण सदोसो, सो पडिकुट्ठो इमे ते य ।।२।। आहाकम्मुद्देसिय, पूईकम्मे य मीसजाए य। ठवणा पाहुडियाए, पाउयरकीयपामिच्चे ।।३।। परिअट्टिए अभिहडु-ब्भिन्ने मालोहडे अ अच्छिज्जे । अणिसिट्ठज्झोयरए, सोलस पिण्डुग्गमे दोसा ।।४।। आहाए वियप्पेणं, जईण कम्ममसणाइकरणं जं। छक्कायारम्भेणं, तं आहाकम्ममाहंसु ।।५।। अहवा जं तग्गाहिं, कुणइ अहे संजमाउ नरए वा। हणइ व चरणायं, से अहकम्म तमायहम्मं वा ।।६।। अट्ठवि कम्माइं अहे, बंधइ पकरेइ चिणइ उवचिणइ । कम्मियभोई अ साहू, जं भणियं भगवईए फुडं ।।७।। तं पुण जं जस्स जहा, जारिसमसणे य तस्स जे दोसा। दाणे य जहापुच्छा, छलणा सुद्धी य तह .वोच्छं ।।८।। असणाइ चउन्भेयं, आहाकम्ममिह बिन्ति आहारं। पढमं चिय जइजोग्गं, कीरंतं निट्ठियं च तहिं ।।९।। तस्स कड तस्स निट्ठिय, चउभङ्गो तत्थ दुचरिमा कप्पा। फासुकडं रद्धं वा, निट्ठियमियरं कडं सव्वं ।।१०।। साहुनिमित्तं ववियाइ, ता कडा जाव तंदुला दुछडा। तिछडा उ निट्ठिया, पाणगाइ जहसम्भवं नेज्जा ।।११।। साहम्मियस्स पवयण-लिङ्गेहि कए कयं हवइ कम्म। पत्तेयबुद्धनिण्हय-तित्थयरट्ठाए पुण कप्पे ।।१२।। पडिसेवणपडिसुणणा संवासणुमोयणेहिं तं होइ। इह तेणरायसुय-पल्लिरायदुढेहिं दिटुंता ।।१३ ।। सयमन्नेण च दिन्नं, कम्मियमसणाइ खाइ पडिसेवा। दक्खिन्नादुवओगे, भणिओ लाभोत्ति पडिसुणणा ।।१४ ।। संवासो सहवासो, कम्मियभोइहिं तप्पसंसाउ। अणुमोयणत्ति तो ते, तं च चए तिविहतिविहेण ।।१५।। वंतुच्चारसुरागोमंससममिमंति तेण तज्जुत्तं। पत्तं पि कयतिकप्पं, कप्पइ पुव्वं करिसघटुं ।।१६।। कम्मगहणे अइकम्म-वइकम्मा तहइयारणायारा। आणाभङ्गणवत्था-मिच्छत्तविराहणा य भवे ।।१७।। आहाकम्मामंतण-पडिसुणमाणे अइकम्मो होइ। पयभेयाइ वइक्कम-गहिए तइएयरो गिलिए।।१८।। भंजड आहाकम्म-सम्मं जो न य पडिक्कमति लद्धो। सव्वजिणाणाविमहस्स-तस्स आराहणा नत्थि।।१९।। जइणो चरणविघाइत्ति-दाणमेयस्स नत्थि ओहेण । बीयपए जइ कत्थवि-पत्तविसेसे व होज्ज जउ।।२०।। संथरणंमि असुद्धं-दोण्हवि गेण्हत्तदेंतयाणऽहियं । आउरदिटुंतेणं-तं चेव हियं असंथरणे ।।२१।। भणियं च पञ्चमङ्गे-सुपत्तसुद्धन्नदाणचउभङ्गे। पढमो सुद्धो बीए-भयणा सेसा अणिट्टफला ।।२२।। देसाणुचियं बहुदव्वमप्पकुलमायरो य तो पुच्छे। कस्स कए केण कयं, लक्खिज्जइ बज्झलिङ्गेहिं ।।२३ ।। थोवंति न पुढें, न कहियं व गूढेहिं नायरो व कओ। इय छलिओ न लग्गइ, सुउवउत्तो असढभावो । ।२४।। आहाकम्मपरिणओ, बज्झइ लिङ्गिव्व सुद्धभोई वि। सुद्धं गवेसमाणो, सुज्झइ खवगव्व कम्मे वि ।।२५।। नणु मुणिणा जं न कयं, न कारियं नाणुमोइयं तं से। गिहिणा कडमाययओ, तिगरणसुद्धस्स को दोसो।।२६।। सच्चं तहवि मुणंतो, गिण्हंतो वद्धए पसंगं से। निद्धंधसो य गिद्धो, न मुयइ सजियं पि सो पच्छा ।।२७।। उद्देसियमोहविभागओ य, ओहे सए जमारंभे । भिक्खाउ कइवि कप्पइ, जो एही तस्स दाणट्ठा ।।२८ ।। बारसविहं विभागे चउहुद्दिटुं कडं च कम्मं च। उद्देससमुद्देसा-देससमाएस भेएण ।।२९ ।। जावंतियमुद्देसं, पासंडीणं भवे समुद्देसं। समणाणं आएसं निग्गंथाणं समाएसं ।।३०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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